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________________ १२४ सिरिवीरभदायरियविरइया 1386. मा कासि तं पमायं सम्मत्ते सव्वदुक्खनासणए । सम्मत्तपविट्ठाइं नाणं-तव-विरिय-चरणाइं ॥ ४५४ ॥ 1387. नगरस्स जह दुवारं, मुहस्स चक्, तरुस्स जह मूलं । तह जाणसु सम्मत्तं नाण-चरण-वीरिय-तवाणं ॥ ४५५॥ 1388. भावाणुराय-पेम्माणुराय-मज्जाणुरायरत्तो य ।। धम्माणुरायरत्तो य होसु जिणसासणे निचं ॥ ४५६ ॥ 1389. दंसणभट्ठो भट्ठो, न हु भट्ठो होइ चरणपन्भट्ठो । दंसणममुयंतस्स उ परिवडणं नत्थि संसारे ॥ ४५७॥ 1390. दंसणभट्ठो भट्ठो दंसणभट्ठस्स नत्थि निव्वाणं । सिझंति चरणभट्ठा दंसणभट्ठा न सिझंति ॥ ४५८॥ 1391. सुद्धे सम्मत्ते अविरओ वि अन्जेइ तित्थयरनामं । जह आगमेसिभद्दा हरिकुलपहु-सेणिया जाया ॥४५९॥ 1392. कल्लाणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता । सम्मईसणरयणं नऽग्घइ ससुराऽसुरो लोओ ॥४६० ॥ 1393. तेलोक्कस्स पहुत्तं लभ्रूण वि परिवडंति कालेणं । सम्मत्तं पुण लड़े अक्खयसुक्खं लहइ मुक्खं २ ॥ ४६१ ॥ 1394. अरहंत-सिद्ध-चेइय-पवयण-आयरिय-सव्वसाहूसु । तित्थंकरेसु भत्तिं निवितिगिच्छेण भावेणं ॥ ४६२ ॥ 1395. एगा वि सा समत्था जिणभत्ती दग्गइं निवारेउं । दुलहाणि लहावेउं आसिद्धिपरंपरसुहाई ॥ ४६३ ॥ 1396. विजा वि भत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाति होइ फलदा य । किं पुण निव्वुइविजा सिज्झिहिति अभत्तिमंतस्स ? ॥ ४६४॥ 1397. तेसिं आराहणनायगाण न करिज जो नरो भत्तिं । धंतं पि संजमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ ॥ ४६५॥ 1398. बीएण विणा सस्सं इच्छइ सो वासमभएण विणा । __ आराहणमिच्छंतो आराहयभत्तिमकरितो ॥४६६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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