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________________ १०८ सिरिवीरभदायरियविरइया 1202. निम्महिय मोहजोहं, समच्छरं रागरायमुद्धरित्रं । भुंजइ चउरंगबलेण सो वि निव्वाणरज्जसुहं ॥ २७० ॥ 1203. गीयत्थपायमूले हुंति गुणा एवमाइया बहवे । न य होइ संकिलेसो, होइ समाही, न य विवेत्ती २ ॥ २७१ ॥ 1204. पंचविहं ववहारं जो जाणइ तत्तओ सवित्थारं । बहुसो य दिट्ठपट्ठावओ य ववहारवं नाम ॥ २७२॥ 1205. आणा १ सुय २ आगम ३ धारणे ४ य जीए ५ य हुंति ववहारा । एएसि सवित्थारा परूवणा सुत्तनिहिट्ठा ॥ २७३॥ 1206. दव्वं खित्तं कालं भावं करण परिणाममुच्छाहं । संघयणं परियायं आगमपुरिसं च विण्णाय ॥ २७४॥ 1207. मुत्तूण राग-दोसे ववहारं पट्ठवेइ सो तस्स । ववहारमयाणंतो अयसं कम्मं च आदियइ ॥ २७५॥ 1208. तम्हा निम्विसियव्वं ववहारविउस्स पायमूलम्मि । तत्थ हु विजा चरणं समाहि बोही य नियमेण ३ ॥ २७६ ॥ 1209. ओयंसी तेयसी वचंसी पहियकित्ति मायरिओ। सीहोवमो उ भणिओ जिणेहिं उप्पीलओ नाम ॥ २७७॥ 1210. निद्धं महुरं हिययंगमं च पल्हायणिज्जमणवजं । को इत्थ पण्णविजंतओ वि नाऽऽलोयए सम्म १ ॥ २७८॥ 1211. तो उप्पीलेयव्वो गुरुणा उप्पीलएण दोसे सो। जह उयरत्थं मंसं वमयइ सीही सियालीए ॥ २७९ ॥ 1212. तह आयरिओ वि अणुजयस्स खमगस्स दोसनीहरणं । कुणइ कडओसह पिव पच्छा पत्थं हवइ तस्स ॥२८॥ 1213. जीहाए विलिहंतो न भद्दओ जत्थ सारणा नत्थि । पाएण वि ताडितो स भद्दओ सारणा जत्थ ॥ २८१॥ 1214. सुलहा लोए आयट्ठचिंतया परहियम्मि मुक्कधरा (१)। आयटुं च परटुं च चिंतयंता जए दुलहा ॥ २८२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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