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सिरिवीरभदायरियविरइया 1202. निम्महिय मोहजोहं, समच्छरं रागरायमुद्धरित्रं ।
भुंजइ चउरंगबलेण सो वि निव्वाणरज्जसुहं ॥ २७० ॥ 1203. गीयत्थपायमूले हुंति गुणा एवमाइया बहवे ।
न य होइ संकिलेसो, होइ समाही, न य विवेत्ती २ ॥ २७१ ॥ 1204. पंचविहं ववहारं जो जाणइ तत्तओ सवित्थारं ।
बहुसो य दिट्ठपट्ठावओ य ववहारवं नाम ॥ २७२॥ 1205. आणा १ सुय २ आगम ३ धारणे ४ य जीए ५ य हुंति ववहारा ।
एएसि सवित्थारा परूवणा सुत्तनिहिट्ठा ॥ २७३॥ 1206. दव्वं खित्तं कालं भावं करण परिणाममुच्छाहं ।
संघयणं परियायं आगमपुरिसं च विण्णाय ॥ २७४॥ 1207. मुत्तूण राग-दोसे ववहारं पट्ठवेइ सो तस्स ।
ववहारमयाणंतो अयसं कम्मं च आदियइ ॥ २७५॥ 1208. तम्हा निम्विसियव्वं ववहारविउस्स पायमूलम्मि ।
तत्थ हु विजा चरणं समाहि बोही य नियमेण ३ ॥ २७६ ॥ 1209. ओयंसी तेयसी वचंसी पहियकित्ति मायरिओ।
सीहोवमो उ भणिओ जिणेहिं उप्पीलओ नाम ॥ २७७॥ 1210. निद्धं महुरं हिययंगमं च पल्हायणिज्जमणवजं ।
को इत्थ पण्णविजंतओ वि नाऽऽलोयए सम्म १ ॥ २७८॥ 1211. तो उप्पीलेयव्वो गुरुणा उप्पीलएण दोसे सो।
जह उयरत्थं मंसं वमयइ सीही सियालीए ॥ २७९ ॥ 1212. तह आयरिओ वि अणुजयस्स खमगस्स दोसनीहरणं ।
कुणइ कडओसह पिव पच्छा पत्थं हवइ तस्स ॥२८॥ 1213. जीहाए विलिहंतो न भद्दओ जत्थ सारणा नत्थि ।
पाएण वि ताडितो स भद्दओ सारणा जत्थ ॥ २८१॥ 1214. सुलहा लोए आयट्ठचिंतया परहियम्मि मुक्कधरा (१)।
आयटुं च परटुं च चिंतयंता जए दुलहा ॥ २८२॥
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