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२. आराहणापडाया [गा. ११२-१६. परिकम्मविहिदारस्स अट्ठमं चायपडिदारं] 1044. संजमसाहणमित्तं उवहिं मुत्तूण सेसयं चयइ ।
सुद्धो विसुद्धलेसो साहू मुत्तिं गवेसंतो ॥११२॥ 1045. जे साहू पंचविहं सुद्धिमलद्धण मुत्तिमिच्छंति ।
पंचविहं च विवेयं ते हु समाहिं न पाविति ॥११३॥ 1046. आलोयण सिजाए १ उवहीए २ तह य भत्त३-पाणस्स ४ ।
वेयावच्चकराण ५ य, सुद्धी खलु पंचहा भणिया ॥११४ ॥ 1047. इंदिय१-कसाय२-उवहीण ३ भत्त-पाणस्स ४ तह सरीरस्स ५ ।
एस विवेओ भणिओ पंचविहो दव्व-भावगओ ॥११५॥ 1048. सव्वत्थ निम्ममत्तो समाहियप्पा विमुक्कउक्करिस्सो।
निप्पणयपेमराओ हविज सव्वत्थ समभावो ॥११६॥ चाओ ८॥
[मा. ११७-२०. परिकम्मविहिदारस्स नवमं सिइपडिदारं] 1049. संलेहणं करितो सव्वं सुहसीलयं पयहिऊणं ।
भावसिइमारुहंतो विहरिज सरीरनिविण्णो ॥११७॥ 1050. उवरुवरि सगुणठाणं पडिवजिंतस्स होइ भावसिई ।
दव्वसिई निस्सेणी पासायमिवाऽऽरुहंतस्स ॥११८॥ 1051. अह सो सिइमारूढो उवहयमवहाय वसहिमुवहिं वा ।
गणिणा सह संलावो, कजं पइ सेससाहूहिं ॥ ११९॥ 1052. सो दाणि तम्मि काले धीरपुरिससेवियं परमघोरं ।
भत्तं परिजाणंतो उवेइ अब्भुज्जयविहारं ॥१२०॥ ॥ सिंई ९॥
[गा. १२१-३३. परिकम्मविहिदारस्स दसमं भावणापडिदारं] 1053. इत्तिरियं सव्वगणं विहिणा वियरित्तु अणुदिसाए उ ।
चइऊण संकिलेसं भावेइ असंकिलेसेण ॥१२१॥ 1054. कंदप्प-देवकिब्बिस-अभियोगा आसुरी य सम्मोहा।
एसा उ संकिलिट्ठा पंचविहा भावणा भणिया ॥१२२॥
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