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________________ सिरिवीरभदायरियविरइया [गा. १००-७. परिकम्मविहिदारस्स छठें अणिययविहारपडिदारं] 1032. दंसणसोही १ थिरकरण २ भावणा ३ अइसयत्थकुसलत्तं ४ । जणवयपरिच्छणा ५ वि य, अणिययवासे गुणा हुँति ॥ १०॥ 1033. निक्खमण-नाण-निव्वाणठाण-चिइचिंध-जम्मभूमीओ। पिच्छंतस्स जिणाणं सुविसुद्धं दंसणं होइ १ ॥१०१॥ 1034. संवेगमसंविग्गाण जणइ, इय सुविहिओ सुविहियाणं । अथिरमईणं च पुणो जणेइ धम्मम्मि थिरकरणं ॥१०२॥ 1035. संविग्गयरे पासिय पियधम्मयरे य वजभीरुतरे । सयमवि पिय-थिरधम्मो साहू विहरंतओ होइ २ ॥१०३॥ 1036. चरिया छुहा य तण्हा सीयं उण्हं च भावियं होइ । अहियासिया य सिज्जा अप्पडिबद्धा विहारेणं ३ ॥१०४ ॥ 1037. सुत्त-ऽत्थथिरीकरणं, अइसयसत्थाण होइ उवलंभो । अइसइयसुयहराणं च दंसणं विहरमाणस्स ४ ॥१०५॥ 1038. निक्खमण-पवेसाइसु आयरियाणं बहुप्पयाराणं । सामायारीकुसलो जायइ गणसंपवेसेण ५ ॥१०६ ॥ 1039. साहूण सुहविहारो निरवजो जत्थ सुलभवित्ती य । तं खित्तं विहरंता नाही संलेहणाजोग्गं ॥१०७॥ अणिययविहारो ६॥ [गा. १०८-११. परिकम्मविहिदारस्स सत्तमं परिणामपडिदारं] 1040. अणुपालिओ य दीहो परियाओ, वायणा य मे दिण्णा । निप्फाइया य सीसा, सेयं खलु अप्पणो काउं॥१०८॥ 1041. किंतु अहालंदविहिं जिणकप्पाईणि किंच पडिवजे । तुलिऊण अप्पयं सो भत्तपरिणाइ कुणइ मई ॥१०९॥ 1042. जाव य सुई न नासइ, जाव य जोगा न मे पराहीणा । जाव य खेम सुभिक्खं, जाव य निजावया सुलभा ॥११॥ 1043. ताव खमं मे काउं सरीरनिक्खेवणं विउपसत्थं । इय निच्छियपरिणामो वुच्छिण्णसजीवियासोय ॥१११॥ परिणामो७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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