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सिरिवीरभद्दायरियविरइया
1055 एयाहिं भावणाहिं भाविंता देवदुग्गइं जंति ।
तत्तो चुया समाणा भमंति भवसायरमणंतं ॥ १२३ ॥ 1056. एयाओ पंच वज्जिय इणमो छट्ठीइ विहरई वीरो । पंचसमिओ तिगुत्तो निस्संगो सव्वसंगेसु ॥ १२४ ॥ 1057. तवभावणा? य सुय२ - सत्तभावणेगत्तभावणा ३-४ चेव । धीबलियभावणा५ वि य असंकिलिट्ठा वि पंचविहा ॥ १२५ ॥ 1058 तत्रभावणार पंचिंदियाणि दंताणि तस्स वसमिति ।
इंदिय जोगायरिओ समाहिकरणाणि सो कुणइ ॥ १२६ ॥ 1059. मुणिनिंदियम्मि इंदियसुहम्मि सत्तो परीसह परज्झो ।
अकयपरिकम्मकीवो मुज्झइ आराहणाकाले १ ॥ १२७॥ 1060 सुयभावणाइ नाणं दंसण तव संजमं च परिणमइ ।
तो उवओगपइण्णं सुहमव्वदिओ समाणेइ २ ॥ १२८॥ 1061. देवेहिं भेसिओ वि हु दिया व राओ व भीमरुवेहिं । तो सत्तभावणार धम्मधुरं निव्भओ वहइ ३ ॥ १२९ ॥ 1062. एगत्तभावणाए न काम-भोए गणे सरीरे वा ।
सज्ज वेरग्गगओ फाइ अणुत्तरं धम्मं ॥ १३० ॥ 1063. भगिणीइ वि हम्मिजंतियाइ एगत्तभावणाइ जहा ।
जिणकपिओ न मूढो, खमओ वि न मुज्झइ तहेव ४ ॥ ९३९ ॥ 1064. कसिणा परीसहचम् सहोवसग्गेहिं जइ य उट्ठना ।
जो होइ तमव्वहिओ धणियं धीरो धिइबलेणं५ ॥ १३२ ॥
- 1065. पडिवतो कप्पं अप्पाणमिमाहिं तुलइ मुणिवसभो ।
एसो वि जहासत्तिं भावे इमाओ को दोसो ? ॥ १३३ ॥ भावणा १० ॥
[गा. १३४ - ६७. परिकम्मविहिदारस्स एकारसमं संलेहणापडिदारं ] 1066. एवं भावेमाणो भिक्खू संलेहणं उवक्कमइ ।
नाणाविण तवसा बझेणऽभितरेण तहा ॥ १३४ ॥
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