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________________ ९६ सिरिवीरभद्दायरियविरइया 1055 एयाहिं भावणाहिं भाविंता देवदुग्गइं जंति । तत्तो चुया समाणा भमंति भवसायरमणंतं ॥ १२३ ॥ 1056. एयाओ पंच वज्जिय इणमो छट्ठीइ विहरई वीरो । पंचसमिओ तिगुत्तो निस्संगो सव्वसंगेसु ॥ १२४ ॥ 1057. तवभावणा? य सुय२ - सत्तभावणेगत्तभावणा ३-४ चेव । धीबलियभावणा५ वि य असंकिलिट्ठा वि पंचविहा ॥ १२५ ॥ 1058 तत्रभावणार पंचिंदियाणि दंताणि तस्स वसमिति । इंदिय जोगायरिओ समाहिकरणाणि सो कुणइ ॥ १२६ ॥ 1059. मुणिनिंदियम्मि इंदियसुहम्मि सत्तो परीसह परज्झो । अकयपरिकम्मकीवो मुज्झइ आराहणाकाले १ ॥ १२७॥ 1060 सुयभावणाइ नाणं दंसण तव संजमं च परिणमइ । तो उवओगपइण्णं सुहमव्वदिओ समाणेइ २ ॥ १२८॥ 1061. देवेहिं भेसिओ वि हु दिया व राओ व भीमरुवेहिं । तो सत्तभावणार धम्मधुरं निव्भओ वहइ ३ ॥ १२९ ॥ 1062. एगत्तभावणाए न काम-भोए गणे सरीरे वा । सज्ज वेरग्गगओ फाइ अणुत्तरं धम्मं ॥ १३० ॥ 1063. भगिणीइ वि हम्मिजंतियाइ एगत्तभावणाइ जहा । जिणकपिओ न मूढो, खमओ वि न मुज्झइ तहेव ४ ॥ ९३९ ॥ 1064. कसिणा परीसहचम् सहोवसग्गेहिं जइ य उट्ठना । जो होइ तमव्वहिओ धणियं धीरो धिइबलेणं५ ॥ १३२ ॥ - 1065. पडिवतो कप्पं अप्पाणमिमाहिं तुलइ मुणिवसभो । एसो वि जहासत्तिं भावे इमाओ को दोसो ? ॥ १३३ ॥ भावणा १० ॥ [गा. १३४ - ६७. परिकम्मविहिदारस्स एकारसमं संलेहणापडिदारं ] 1066. एवं भावेमाणो भिक्खू संलेहणं उवक्कमइ । नाणाविण तवसा बझेणऽभितरेण तहा ॥ १३४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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