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१. आराहणापडाया 867. अग्गि-जल-वाल-विसहर-विस-अरि-सत्थाभिघाय-वाहीहिं ।
मुत्त-पुरीसनिरंभण-उण्ह-पिवासा-खुहाईहिं ॥ ८६७॥ 868. जं दुक्खं संपत्तो अणंतखुत्तो मणे सरीरे य।
माणुसभवे वि तं सव्वमेव चिंतेहि तं धीर ! ॥ ८६८॥ मनुष्यगतिः॥ 869. सुरलोगम्मि सुरा वि हु वरभूसणभूसिया अणंतसुहं ।
अणुहविय परिवडती तओ वि तेसिं महादुक्खं ॥ ८६९ ॥ 870. एगत्थसुरसमिद्धिं अन्नत्थ व पिच्छिउं चवणदुक्खं ।
सयसिक्करं व फुट्टइ जं न वि हिययं, अओ चुजं ॥ ८७० ॥ 871. ईसा-विसाय-परिभव-परपेसण-वजताडणाईणि ।
दुक्खाइं सुरविलासिणिविओगजणियाणि देवाणं ॥ ८७१ ॥ 872. कह सद्द-रूव-रस-गंध-फास-मणहरसुरंगणसुहाई।
अणुहविय गब्भदुक्खं पिक्खिय देवा न दुम्मति १ ॥ ८७२ ॥ 873. छम्माससेसजीवियमरणभयऽकंतकंपिरसरीरा ।
कत्थइ न लहंति रई देवा सयणे वणे भवणे ॥ ८७३॥ 874. पमिलाणमल्लदामा सिरि-हिरिपरिवज्जिया मलिणवसणा।
चितिंति सुरा विमणा 'तुच्छो धम्मो कओ पुवि' ॥ ८७४ ।। 875. इय देवेसु वि अभिमाणमित्तसुक्खाइं गरुयदुक्खाई।
चिंतसु निव्वुयहियओ तेसिं पि असारयं बहुसो ॥ ८७५ ॥ देवगतिः॥ 876. एवं एयं सव्वं दुक्खं चउगइगयम्मि जं पत्तो।
तत्तो अणंतभाओ होजा न य दुक्खमेयं ते ॥ ८७६ ।। 877. संखिज्जमसंखिजं कालं ताई अवीसमंतेण ।
दुक्खाई सोढाइं, किं पुण अइअप्पकालमिणं १ ॥ ८७७ ॥ 878. जइ ता तारिसयाओ सोढाओ वेयणाओ अवसेण ।
धम्मो ति इमा सवसेण कहं सोलु न तीरिजा १ ॥ ८७८॥
१. पिच्छिय C. E. ॥ २. कच्छइ A. ॥ ३. ति A. विना ॥
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