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१७. गच्छायारपइण्णयं २९९४. जत्थ य गिहत्थभांसाहिं भासए अज्जिया सुरुट्ठा वि ।
तं गच्छं गुणसायर ! समणगुणविवज्जियं जाण ॥१११॥ २९९५. गणिगोयम ! जा उचियं सेयं वत्थं विवजिउं ।
सेवए चित्तरूवाणि, न सा अजा वियाहिया ॥ ११२॥ २९९६. सीवणं तुन्नणं भरणं गिहत्थाणं तु जा करे ।
तिल्लउव्वट्टणं वा वि अप्पणो य परस्स य ॥११३॥ २९९७. गच्छइ सविलासगई सयणीयं तूलियं सबिब्बोयं ।
उन्चट्टेइ सरीरं सिणाणमाईणि जा कुणइ ॥११४॥ २९९८. गेहेसु गिहत्थाणं गंतूण कहा कहेइ काहीया ।
तरुणाइ अहिवडते अणुर्जाणे, सा इ पडिणीया ॥११५॥ २९९९. वुड्राणं तरुणाणं रत्तिं अजा कहेइ जा धम्मं ।
सा गणिणी गुणसायर ! पडणीया होइ गच्छस्स ॥११६॥ ३०००. जत्थ य समणीणमसंखडाई गच्छम्मि नेव जायंति ।
तं गच्छं गच्छवरं, गिहत्थभासाओ नो जत्थ ॥११७॥ ३००१. जो जत्तो वा जाओ नाऽऽलोयइ दिवस पक्खियं वा वि ।
सच्छंदा समणीओ मयहरियाए न ठायंति ॥११८॥ ३००२. विंटलियाणि पउंजंति, गिलाण-सेहीण ने] तप्पंति ।
अणगाढे आगाढं करेंति, आगाढि अणगाढं ॥ ११९॥ ३००३. अजयणाए पकुव्वंति पाहुणगाण अवच्छला ।
चित्तलयाणि य सेवंति, चित्ता रयहरणे तहा ॥१२०॥ ३००४. गइ-विन्भमाइएहिं आगार विगार तह पगासिंति ।
जेह वुड्डाण वि मोहो समुईरइ, किं नु तरुणाणं १ ॥१२१ ॥
१. °भासाइ भा° सा० पु०॥ २. जाणे जा उ सा पडणी सा० पु०॥ ३. दाउ व सवणे मय° सं०॥ ४. नेव तिप्पंति सा०॥ ५. जह क्रमढगाण मोहो सं०। जह कब्ब(प्पोटगाण मोहो जे० पु०॥
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