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५ २९१७. ओसन्नो वि विहारे कम्मं सोहेइ सुलभबोही य । चरण - करणं विसुद्धं उववूहिंतो परूविंतो ॥ ३४ ॥
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परण्णयसुतेसु
२९१५. सुद्धं सुसाहुमग्गं कहमाणो ठवइ तइयपक्खम्मि । अप्पाणं, इयरो पुण गिहत्थधम्माओ चुक्को त्ति ॥ ३२ ॥ २९१६. जइ वि न सैंक्कं काउं सम्मं जिणभासियं अणुट्ठाणं । तो सम्म भासिज्जा जह भणियं खीणरागेहिं ॥ ३३ ॥
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२९१८. सम्मग्गमग्गसंपट्ठियाण साहूण कुणइ वच्छलं । ओसह-मेसज्जेहि य सयमन्नेणं तु कारेई || ३५ ॥
२९१९. भूए अत्थि भविस्संति केइ तेलोक्कनमंसणीय कमजुयले । जेसिं परहियकरणेक्कबद्धलक्खाण वोलिही कालो ॥ ३६ ॥ २९२०. तीयाणागयकाले केई होहिंति गोयमा ! सूरी । जेसिं नामग्गहॅणे वि हो नियमेण पच्छित्तं ॥ ३७ ॥ जओ
२९२१. सइरीभवंति अणवेक्खयाइ, जह भिच्च वाहणा लोए । पडिपुच्छ सोहि चोयण, तम्हा उ गुरू सया भयई ॥ ३८ ॥ २९२२. जो उ पमायदोसेणं, आलस्सेणं तहेव य ।
सीसवग्गं न चोएइ, तेण आणा विराहिया || ३९ ॥ २९२३. संखेवेणं मए सोम्म ! वण्णियं गुरुलक्खणं ।
गच्छस्स लक्खणं धीर ! संखेवेणं निसामय ॥ ४० ॥
[गा. ४१ - १०६. साहुसरूववण्णणाहिगारो ] २९२४. गीयत्थे जे सुसंविग्गे अणालस्सी दढव्वए । अखलियचरिते सययं राग-दोसविवज्जिए ॥ ४१ ॥
१. चुक्कु त्ति जे० पु० । चुक्केति सा० ॥ सा० ॥ ५. 'हणेण हो' जे० सं० पु० ॥ ८. सोम ! सं० ॥
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२. सक्कइ का सं० ॥ ३. ता जे० ॥ ४. 'नमियक' ६. होइ नि° जे० ॥ ७. पडिपुच्छाहिं चो' जे० धृ० ॥
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