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पण
२७९०. कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणं । निग्गिन्ह तेण सुपुरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं ॥ १५१ ॥ २७९१. जं अइतिक्खं दुक्खं जं च सुहं उत्तिमं तिलोईए । तं जाण कसायाणं बुड्डि-क्खयद्देउयं सव्वं ॥ १५२ ॥ ५ २७९२. कोहेण नंदमाई निहया, माणेण फेरुसरामाई । मायाइ पंडरज्जा, लोहेणं लोहनंदाई ॥ १५३ ॥
[गा. १५४-५५. भत्तपरिन्नयस्स गुरुअणुसट्ठिपडिवत्ती] २७९३. इय उवएसामयपाणएण पल्हाइयम्मि चित्तम्मि |
जाओ सुनिओ सो पाऊण व पाणियं तिसिओ ॥ १५४ ॥ 'इच्छामो अणुसद्धिं भंते ! भवपंकतरणदढलट्ठि | जं जह वृत्तं तं तह करेमि ' विणओणओ भणइ ॥ १५५ ॥
१० २७९४.
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[गा. १५६ - ७१. वियणाघत्थं भत्तपरिन्नयं पर गुरूवएसो] २७९५. जइ कह वि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा । अहवा तण्हाईया परीसहा से उदीरिजा ॥ १५६ ॥
१५ २७९६. निद्धं महुरं पल्हायणिज्ज हिययंगमं अणलियं च । तो सेहावेयव्वो सो खवओ पन्नवतेणं ॥ १५७ ॥ २७९७. संभरसु सुयण ! जं तं मज्झम्मि चउव्विहस्स संघस्स | बूढा महापन्ना ' अहयं आराहइस्सामि ' ॥ १५८ ॥ २७९८. अरिहंत-सिद्ध- केवलिपच्चक्खं सव्वसंघर्सेक्खिस्स । पञ्चक्खाणस्स कयस्स भंजणं नाम को कुणइ ? ॥ १५९ ॥
२७९९. भालुंकीए करुणं खज्जतो घोरवेयणत्तो वि । आराहणं पवन्नो झाणेण अवंतिसुकुमालो ॥ १६० ॥
१, तिछोए वि पु० ॥ २, फरसुरा सा० ॥ ३, सीहा सं० जे० ॥ ४. सक्खरस सं० ॥
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