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________________ जैन-आगमसंबंधित संक्षिप्त वक्तव्य व्याख्याता - स्व. आगम प्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी जैन आगम-जिस प्रकार वैदिक और बौद्ध साहित्य मुख्य और अवान्तर अनेक विभागोंमें विभक्त है उसी प्रकार जैन आगम भी अनेक विभागों में विभक्त है। प्राचीन कालमें आगमोंके अंग आगम और अंगबाह्य आगम या कालिक आगम और उत्कालिक आगम इस तरह विभाग किये जाते थे। अंग आगम वे हैं जिनका श्रमण भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर-पट्टशिष्योंने निर्माण किया है। अंगबाह्य आगम वे हैं जिनकी रचना श्रमण भगवान् महावीरके अन्य गीतार्थ स्थविरों, शिष्योंप्रशिष्यों एवं उनके परम्परागत स्थविरोंने की थी। स्थविरोंने इन्हीं आगमोंके कालिक और उत्कालिक ऐसे दो विभाग किये हैं। निश्चित किये गये समयमें पढ़े जाने वाले आगम कालिक हैं और किसी भी समयमें पढ़े जाने वाले आगम उत्कालिक हैं। आज सैकडों वर्षोंसे इनके मुख्य विभाग अंग, उपांग, छेद, मूल आगम, शेष आगम एवं प्रकीर्णकके रूपमें रूढ़ हैं। प्राचीन युगमें इन आगमोंकी संख्या नंदीसूत्र और पाक्षिकसूत्रके अनुसार चौरासी थी परन्तु आज पैंतालीस है। नंदीसूत्रमें एवं पाक्षिकसूत्र में जिन आगमोंके नाम दिये हैं उनमें से आज बहुतसे आगम अप्राप्य हैं जब कि आज माने जानेवाले आगमोंकी संख्यामें नये नाम भी दाखिल हो गये हैं जो बहुत पीछेके अर्थात् ग्यारहवीं शताब्दीके प्रथम चरणके भी हैं। आज माने जानेवाले पैंतालीस आगमोमेंसे बायालीस आगमोंके नाम नंदीसूत्र और पाक्षिकसूत्रमें पाये जाते हैं किन्तु आज आगमोंका जो क्रम प्रचलित है वह ग्यारह अंगोको छोडकर शेष आगमोका नंदीसूत्र और पाक्षिकसूत्रमें नहीं पाया जाता। नंदीसूत्रकारने अंग आगमको छोडकर शेष सभी आगमोंको प्रकीर्णकों में समाविष्ट किया है। आगमके अंग, उपांग, छेद, प्रकीर्णक आदि विभागोंमें से अंगोंके बारह होनेका समर्थन स्वयं अंग ग्रंथ भी करते हैं। उपांग आज बारह माने जाते हैं किन्तु स्वयं निरयावलिका नामक उपांगमें उपांगके पांच वर्ग होनेका उल्लेख है। 'छेद' शब्द नियुक्तियोंमें निशीथादिके लिये प्रयुक्त है। प्रकीर्णक शब्द भी नंदीसूत्र जितना तो पुराना है ही किन्तु उसमें अंगेतर सभी आगमोंको प्रकीर्णक कहा गया है। ___ अंग आगमोंको छोडकर दूसरे आगमोंका निर्माण अलग अलग समयमें हुआ है। पण्णवणा सूत्र श्यामार्यप्रणीत है। दशा, कल्प एवं व्यवहार सूत्रके प्रणेता चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहु हैं। निशीथसूत्रके प्रणेता आर्य भद्रबाहु या विशाखगणि महत्तर हैं। अनुयोगद्वारसूत्रके निर्माता स्थविर आर्यरक्षित हैं। नंदीसूत्रके कर्ता श्री देववाचक हैं। प्रकीर्णकोंमें गिने जानेवाले चउसरण, आउरप ૧. તા. ૧૪ થી ૧૬ ઓકટોબર સન ૧૯૬૧ માં શ્રીનગર (કાશ્મીર) માં સમ્મિલિત “અખિલ भारतीय प्रायविधापरिषत् 'भा, 'प्राकृत और जैनधर्म' विभागना अध्यक्ष स्थानथी पूज्यपाह આગમપ્રભાકર મુનિશ્રીએ મોકલેલા નિબંધમાંથી આ જૈન-આગમ પૂરતો અંશ અહીં ઉદ્ધૃત કરેલ છે. સૂચિત સંપૂર્ણ નિબંધ, “સાગરગચ્છ ઉપાશ્રય-વડોદરા” તરફથી “પૂજ્ય મુનિશ્રી પુણ્યવિજયજી અભિવાદન ગ્રંથ' રૂપે પ્રકાશિત થયેલા “જ્ઞાનાંજલિ(પૃ. ૪૪ થી ૪૭) ગ્રંથમાંથી પ્રસ્તુત અંશ સાભાર લીધેલ છે. ૨. પૂજ્યપાદ આગમપ્રભાકરછના સૂચિત અભિભાષણરૂપ નિબંધમાં, નંદિસૂત્રના કર્તાને સંબંધમાં, પ્રસિદ્ધ વિદ્વાન પૂજ્યપાદ પં. શ્રી કલ્યાણવિજયજીના વિધાનને અનુસરીને આ પ્રમાણે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001044
Book TitlePainnay suttai Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1984
Total Pages689
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size11 MB
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