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किञ्चत् प्रास्ताविकम्
१७ में प्रकाशित किया है। १-२-३ अध्ययनयुक्त प्रथम विभाग, और ४-५-६ अध्ययनयुक्त द्वितीय विभाग कुछ समय पूर्व ही प्रकाशित हो चुके हैं। आज ७-८-९-१० अध्ययनवाला तृतीय विभाग अनेक परिशिष्टों के साथ प्रकाशित हो रहा है। यह अन्तिम विभाग है और इस विभाग में सटीक स्थानांग सूत्र सम्पूर्ण प्रकाशित हो जाता है।
परमकृपालु अनन्त अनन्त उपकारी अरिहंत परमात्मा एवं मेरे परम उपकारी परमपूज्य सद्गुरुदेव एवं पिताश्री मुनिराजश्री भुवनविजयजी महाराज की कृपा से ही यह कार्य संपन्न हुआ है। ___ इस महान कार्य में मेरे शिष्य मुनिराजश्री धर्मचन्द्रविजयजी, पुंडरीकरत्नविजयजी, धर्मघोषविजयजी एवं महाविदेहविजयजीने बहुत सहयोग दिया है।
मेरी परमोपकारिणी शतवर्षाधिकायु परमपूज्य माता साध्वीजी (जिन का मेरे उपर अपार आशीर्वाद है) श्री मनोहरश्रीजी महाराज की शिष्या परमसेविका साध्वीजी श्री सूर्यप्रभाश्रीजी महाराज की शिष्या साध्वीजीश्री जिनेन्द्रप्रभाश्रीजी ने इस विराट संशोधन कार्य में अति अति सहयोग दिया है।
___ इस कार्य में जिन्हों ने भिन्न भिन्न रूप से सहयोग दिया है, उन सबको मेरा हार्दिक अभिनंदन एवं धन्यवाद है। प्रभुकी असीम कृपा से ही संपन्न इस ग्रंथको प्रभु के करकमलों में समर्पण कर आज में धन्यता का अनुभव कर रहा हूँ। लोलाडा (ता. समी),
पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरपट्टालंकारजि. पाटण, उत्तर गुजरात
पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरशिष्यPin-384242
पूज्यपादसद्गुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयान्तेवासी विक्रमसं० २०६०, कार्तिकशुक्लद्वितीया
मुनि जम्बूविजयः सोमवार ता० २७-१०-०३ मुनि देवभद्रविजयस्वर्गवासदिवसः
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