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________________ पञ्चमं परिशिष्टम् । २०१ m m २६४ उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः | उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः तिविहं च होइ दुग्गं रुक्खे..... दंतो समत्थो वोढुं पच्छित्तं... ] ७२८ [बृहत्कल्प० ६१८३] दसणसीले जीवे... [प्रथमकर्म० १९] १६५ तिविहा होइ निवण्णा ओमंथिय..... दइएण वत्थिणा वा ....[ओघनि० ३६२] ५८० [बृहत्कल्प० ५९४६] ५१४ | दक्खिणपुचेण रयणकूडं ...द्वीपसागर० १६] ३७९ तिविहे य उवस्सग्गे दिवे...[बृहत्कल्प०६२६९]५६३ | दक्षिणपार्श्वे स्पन्दमभिधास्ये ......[ ] ७३३ तिहुयणविक्खायजसो.....[विशेषाव० १०५९] ५८ दक्षो १ विज्ञातशास्त्रार्थो.....[ ] ४५३ तुज्झ पिया मज्झ पिउणो....[दशवै०नि० ८६] ४४४ | दत्ती उ जत्तिए वारे ..... [ ] ५१३ तुद व्यथने [पा०धा० १२८२] २१८ | दत्तीहि व कवलेहिं व...[आव०नि० १५९०] ८५७ तुल्लं १ वित्थरबहुलं....बृहत्सं० १७६] ६१२ | दप्पो पुण होइ......[ ] ८३४ तुल्लम्मि वि अवराहे...बृहत्कल्प० ४९७४] २७६ | दया-दान-क्षमाद्येषु...[ ] तृणायापि न.......[ ] १२| दवए १ दुयए २....[विशेषाव० २८] १७४ ते पासाया कोसं ......[बृहत्क्षेत्र० २८९] ७४८ | दवगुल-पिंडगुला दो मज्जं...[पञ्चव० ३७४] ३४७ तेओजोगेण जहा.... [ ] १८१ | दवट्ठवणाऽऽहारे विगई... तेण कहियं ति व ......विशेषाव० २३६१] ७०६ | निशीथभा० ३१६६] ५३४ तेण परं उवरिमगा...[बृहत्सं० १२७] २४७ | दवम्मि मंथओ......बृहत्कल्प० ६३१६] ६३७ तेणावधीयते तम्मि.....[विशेषाव० ८२] ५९५ | दवाइअलंभे पुण......[ ] ८३५ तेत्तीसं च सहस्सा....[बृहत्क्षेत्र० ३२] ११८ | दवाइएहिं किणणं .....[पञ्चा० १३।११] ८०४ तेरस १-२ बारस...विमान० १२९] ६२८ | दब्बाइत्ते तुल्ले जीव-....[विशेषाव० १८२३] ४९ तेरिक्कारस नव सत्त .....[बृहत्सं० २५३] ६२७ | दवाण सबभावा....[उत्तरा० २८।२४] ८६७ तेवढं कोडिसयं .....द्वीपसागर० २५] ३९३ | दबादी चउभेयं....विशेषाव० ९४६] ७ तेसि नमो तेसि नमो ....[पञ्चव० १६००] ५५२| | दवावाए दुन्नि उ ....[दशवै० नि० ५५] ४३६ तेसि नमो तेसि....[पञ्चव० १६००] १६२ | दवे खेत्ते काले भावे पलिउंचणा...... तो कयपच्चखाणो..... पञ्चव० ५३७, व्यवहारभा० १५०] पञ्चा० ५।४०] __ ५११ | दवे सुहुमपरट्टो जाहे ....[ ] २६८ तो तं कत्तो ?.... विशेषाव० ११४१] दस-कप्प-व्यवहारा......[पञ्चवस्तु० ५८३] ३ तो समणो जइ .....[दशवै० नि० १५६] ४८४ | | दस-कप्प-बवहारा .....[पञ्चव० ५८३] ५१८ थिरकरणा पुण.... [व्यव० १९६१] २४२ | दस चेव जोयणसए.... [द्वीपसागर० ७४] २८२ थेरवयणं जइ परे ......[विशेषाव० २३६०] ७०६ | दस चेव जोयणसए ......द्वीपसागर० ७४] ८२७ थेवं बहुनिव्वेसं [ओघनि० ५३०] ५४० दस चेव सहस्सा...[द्वीपसागर० ११४] २८२ दंतवणं तंबोलं.... [पञ्चाशक० ५।३०] १८४ | दसजोयणसहस्सा ....[बृहत्क्षेत्र० २।१७] ३८७ दंतेहि हणइ भद्दो मंदो ....[ ] ३५५ | दसठाणठिओ कप्पो....[बृहत्कल्प० ६३६३] २८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001029
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages588
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size11 MB
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