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________________ [सू० ५५५] सप्तममध्ययनं सप्तस्थानकम् । ६८१ [सू० ५५५] जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पन्नत्ता, तंजहा-भरहे, एरवते, हेमवते, हेरन्नवते, हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे । __ जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासहरपव्वता पन्नत्ता, तंजहा-चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, निसढे, नीलवंते, रुप्पी, सिहरी, मंदरे । जंबुद्दीवे दीवे सत्त महानदीओ पुरत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समप्पेंति, 5 तंजहा-गंगा, रोहिता, हिरी, सीता, णरकंता, सुवण्णकूला, रत्ता । जंबुद्दीवे दीवे सत्त महानदीओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समति, तंजहा-सिंधू, रोहितंसा, हरिकंता, सीतोदा, णारिकंता, रुप्पकूला, रत्तावती। धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं सत्त वासा पनत्ता, तंजहा-भरहे जाव महाविदेहे। धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं सत्त वासहरपव्वता पन्नत्ता, तंजहा-चुल्लहिमवंते 10 जाव मंदरे । धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं सत्त महानदीओ पुरत्थाभिमुहीओ कालोदसमुदं समप्पेंति, तंजहा-गंगा जाव रत्ता । धायइसंडदीवपुरथिमद्धे णं सत्त महानदीओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समप्येति, तंजहा-सिंधू जाव रत्तावती । धायइसंडदीवपच्चत्थिमद्धे णं सत्त वासा एवं चेव, णवरं पुरत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समप्पेंति, पच्चत्थाभिमुहीओ कालोदं, सेसं तं चेव । पुक्खरवरदीवड्डपुरत्थिमद्धे णं सत्त वासा तहेव, णवरं पुरत्थाभिमुहीओ पुक्खरोदं समुदं समप्पेंति, पच्चत्थाभिमुहीतो कालोदं समुदं समप्पेंति, सेसं तं चेव। एवं पच्चत्थिमद्धे वि, णवरं पुरत्थाभिमुहीओ कालोदं समुदं समप्पेंति, 20 पच्चत्थाभिमुहीओ पुक्खरोदं समुदं समप्यति, सव्वत्थ वासा वासहरपव्वता णदीओ य भाणितव्वाणि । [टी०] इदं च कायक्लेशरूपं तपो मनुष्यलोक एवास्तीति तत्प्रतिपादनपरं जंबुद्दीवेत्यादि प्रकरणम्, गतार्थं चैतत् ।। १. जंबूदी जे१ । जंबुदी' पामू० ॥ 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001029
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages588
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size11 MB
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