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________________ ३६ द्वितीयं परिशिष्टम् २८१ गाथा पृष्ठाङ्कः | गाथा पृष्ठाङ्कः धाई १ दूइ २ निमित्ते...[पञ्चाशक० १३।१८, महिलासहावो १... [बृहत्कल्प० ५१४४] २७८ पञ्चव० ७५४ पिण्डनि० ४०८] २७० जिणवयणे पडिकुटुं...[निशीथ० ३७४५] २७९ पुव्विं पच्छा संथव... [पिण्डनि० ४०९, बाले वुड्ढे नपुंसे... [निशीथ० ३५०६] २७९ पञ्चा० १३।१९, पञ्चव० ७५५] २७० | दासे दुढे [य]....[निशीथ० ३५०७] २७९ एसणगवेसणन्नेसणा य.... [पञ्चा० १३।२५, | गुब्विणी बालवच्छा...[निशीथ० ३५०८] २७९ पञ्चव० ७६१] २७० | पव्वाविओ सिय त्ति,..[बृहत्कल्प० ५१९०] २७९ संकिय १ मक्खिय.... [पञ्चा० १३।२६, । | इहरह वि ताव...[बृहत्कल्प० ५२०१] २८० पञ्चव० ७६२, पिण्डनि० ५२०] २७० | गोजूहस्स पडागा.... [बृहत्कल्प० ५२०२] २८० सोलस उग्गमदोसा... [पिण्डनि० ४०३] २७० | विणयाहीया विज्जा...[बृहत्कल्प० ५२०३] २८० आहाकम्मामंतण पडिसुणमाणे... अतवो न होइ... बृहत्कल्प० ५२०६] २८० व्यवहारपीठिका ४३] २७१ अप्पे वि पारमाणिं...[बृहत्कल्प० ५२०७] २८० भिक्खायरियाइ... [आव०नि० १४३९] २७१ | दुविहो उ परिच्चाआ... बृहत्कल्प० ५२०८] २८० सद्दाइएसु रागं दोसं...[आव०नि० १४४०] २७१ पुव्वं कुग्गाहिया...[बृहत्कल्प० ५२२४] २८१ किंपत्तियण्णं भंते !..[भगवती० ३।२।१३] २७४ | पुक्खरवरदीवड्ढं....[द्वीपसागर० १] २८१ नाणस्स केवलीणं....[बृहत्कल्प० १३०२] २७५ | सत्तरस एगवीसाई... [द्वीपसागर० २] अद्धेण छिन्नसेसं पुव्वद्धेणं....[ ] २७६ | दस बावीसाइं अहे... [द्वीपसागर० ३] २८१ आसायण पडिसेवी....[बृहत्कल्प० ४९७२] २७६ | चत्तारि य चउवीसे....[द्वीपसागर० ४] २८१ सव्वचरित्तं भस्सइ...[बृहत्कल्प० ४९७३] २७६ | जंबूदीवो १ धायइ....[बृहत्सं० ८२] २८१ तुल्लम्मि वि अवराहे...[बृहत्कल्प० ४९७४] २७६ नंदीसरो य ८.....[बृहत्सं० ८३] २८२ तित्थयरपवयणसुए आयरिए... | कुंडलवरस्स मज्झे... [द्वीपसागर० ७२] २८२ [बृहत्कल्प० ४९७५, ५०६०] २७६ | बायालीससहस्से... [द्वीपसागर० ७३] २८२ सव्वे आसायंते....[बृहत्कल्प० ४९८३] २७६ | दस चेव जोयणसए.... [द्वीपसागर० ७४] २८२ पडिसेवणपारंची.. [बृहत्कल्प० ४९८५] २७७ | चत्तारि जोयणसए... [द्वीपसागर० ७५] २८२ दुविहो य होइ... [बृहत्कल्प० ४९८६] २७७ | रुयगवरस्स उ मज्झे...[द्वीपसागर० ११२] २८२ लिंगेण लिंगिणीए.. [बृहत्कल्प० ५००८] २७७ | रुयगस्स उ उस्सेहो...[द्वीपसागर० ११३] २८२ पावाणं पावयरो... [बृहत्कल्प० ५००९] २७७ | दस चेव सहस्सा...[द्वीपसागर० ११४] २८२ संसारमणवयग्गं जाइ-..[बृहत्कल्प० ५०१०] २७७ | सामर्थ्य वर्णनायां च... [ ] २८३ जो य सलिंगे दुट्ठो..... [ ] २७७ | सिजायरपिंडे या १...[बृहत्कल्प० ६३६१] २८३ अवि केवलमुप्पाडे... [बृहत्कल्प० ५०२४] २७७ | आचेल १ कुद्देसिय...[बृहत्कल्प० ६३६२] २८३ आसय-पोसयसेवी के..[बृहत्कल्प० ५०२६] २७७ | दुविहो होइ अचेलो..[बृहत्कल्प० ६३६५] २८४ उक्कोसं बहुसो वा....[ ] २७८ | सीसावेढियपोत्तं....[बृहत्कल्प० ६३६६] २८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001027
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages828
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size39 MB
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