SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 583
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ द्वितीयं परिशिष्टम् २४६ गाथा पृष्ठाङ्कः | गाथा पृष्ठाङ्कः पुढवि १ जल २.... [विशेषाव० २७०३] २२५ माल्यम्लानि: कल्पवृक्ष-...[ ] २४५ समुच्छिम १५ कम्मा...[विशेषाव० २७०४] २२५ | देवा वि देवलोए....[उपदेशमाला० २८५] २४५ सत्थेण सुतिक्खेण वि..जम्बूद्वीपप्र० २।२८] २२७ | तं सुरविमाणविभवं...[उपदेशमाला० २८६] २४५ कत्थइ पुच्छइ सीसो...[दशवै०नि० ३८] २२८ | सव्वेसु पत्थडेसु... [विमान० २४५] २४६ पमाओ य मुणिदेहिं....[ ] २२८ वटुं वट्टस्सुवरिं तसं...[विमान० २४६] २४६ रागो दोसो मइब्भंसो,...[ ] २२८ वट्टं च वलयगं पि व...[विमान० २४७] २४६ प्राणा द्वित्रिचतुः प्रोक्ता....[ ] २३० | सव्वे वट्टविमाणा... [विमान० २४८] २४६ दानपुण्यफला कीर्तिः,..... [ ] २३२ | पागारपरिक्खित्ता...[विमान० २४९] २४६ रणया उवभोगो...बृहत्कल्पभा० २३६७] २३३ | जत्तो वट्टविमाणं...[विमान० २५०] वेउव्विऽवाउडे वाइए....[ओघ०नि० ७२२] २३३ | आवलियासु विमाणा...[विमान० २५१] २४६ तणगहणा-ऽनलसेवा... [ओघनि० ७०६] २३४ घणउदहिपइट्ठाणा...[बृहत्सं० १२६] २४७ अतरंत-बाल-वुड्डा.... [ओघनि० ६९२] २३४ तेण परं उवरिमगा...[बृहत्सं० १२७] २४७ एगं व दो व तिन्नि...[निशीथभा० २०७५] २३६ जाहे णं भंते !.... भगवती० १४।६।६] २४७ संभोइओ असुद्धं.... [निशीथचू० ] २३६ फलियं पहेणगाई ... [व्यव० ९।३८२१] २४९ पंचविहं आयारं... [आव०नि० ९९८] २३६ सुद्धं च अलेवकडं.... [व्यव० ९।३८२०] २५० सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो.... [ ] भुंजमाणस्स उक्खित्तं,...[व्यव० ९।३८३८] २५० सम्मत्तनाणदंसणजुत्तो.... [] २३६ अह साहीरमाणं तु,...[व्यव० ९।३८२९] २५० तम्हा वयसंपन्ना... [पञ्चव० ९३२] २३६ भुत्तसेसं तु जं भूओ, ...[व्यव० ९।३८३०] २५१ इहरा उ मुसावाओ.... [पञ्चव० ९३३] २३६ | पक्खेवए दुगुंछा.... [व्यव० ९।३८२६] २५१ सुत्तत्थे निम्माओ.... [पञ्चव० १३१५] २३७ जं वट्टइ उवगारे..... [ ] २५१ संगहुवग्गहनिरओ... [पञ्चव० १३१६] २३७ | बत्तीसं किर कवला.... [पिण्डनि० ६४२] २५१ जे यावि मंदि....[दशवै० ९।१।२] २३७ | उवसंपया य तिविहा...[आव० नि० ६९७, कवलाण य परिमाणं......[ ] २५१ पञ्चा० ५८६] २३७ अप्पाहार १ अवड्डा २......[ ] २५१ नियगच्छादन्नम्मि उ....[आव०नि० ७१८] २३७ | कोहाईणमणुदिणं चाओ.....[ ] २५१ उवसंपन्नो जं कारणं....[आव०नि० ७२०] २३८ एग ७२० २३ एगं पायं जिणकप्पियाणं [ओघनि० ६७९] २५२ तवसंजमजोगेसुं जो....व्यव० १९५९] २४२/ जे णं गोसाला !...[भगवती०१५।५४] २५२ थिरकरणा पुण.... [व्यव० १९६१] २४२ / मासाई सत्तता...[आव०भा०, पञ्चाशक० १८।३] पियधम्मे दढधम्मे...[निशीथभा० २४४९, बृहत्कल्प० २०५०] २४२ | पाडवज्जइ एयाआ... [पञ्चाशक० १८।४] २५३ २५३ उहावणा-पहावण-...व्यव० १२९६२] २४३ गच्छे च्चिय.... [पञ्चाशक० १८५] २३६ २५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001027
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages828
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy