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१७०] पंचमे पिंडेसणऽज्झयणे पढमो उद्देसओ १६१. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥७९॥ १६२. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा।
अंगणिम्मि होज निक्खित्तं तं च ओसक्किया दए ॥ ८०॥ १६३. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं ।
देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ८१॥ १६४. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा।
अंगणिम्मि होज निक्खित्तं तं च उज्जालिया दए ॥ ८२॥ १६५. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं ।
देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ८३॥ १६६. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा।
अंगणिम्मि होज निक्खित्तं तं च पज्जालिया दए ॥ ८४ ॥ १६७. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं ।
देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ८५॥ १६८. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा।
अंगणिम्मि होज निक्खित्तं तं च निव्वाविया दए ॥८६॥ १६९. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं ।
देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ८७॥ १७०. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा ।
अगणिम्मि होज निक्खित्तं तं च उसिंचिया दए ॥ ८८॥
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उस्सिचिया ६ निस्सिंचिया ७ उवत्तिया ८ ओयारिया ९, खं १-२-३-४ शु० हाटी०; अत्र 'उन्वत्तिया' स्थाने खं १ हाटी० 'ओवत्तिया' पाठो वर्तते । जे० प्रतावत्र मूलवाचनागता अष्टादश सूत्रलोका वर्तन्ते। वृद्धविवरणे तु उस्सक्किया १ उज्जालिया २ णिवाविया ३ उसिंचिया ४ निस्सिचिया ५ उव्वत्तिया ६ ओयारिया ७ इति सप्तपदाङ्किताः सप्त सूत्रश्लोका दृश्यन्ते। अगस्त्यचूर्णी पुनः उस्सिक्किया १ तं भवे०२ ओसक्किया ३ उजालिया ४ विज्झविया ५ उस्सिंचिया ६ उक्कढिया ७ णिस्सिचिया ८ भोवत्तिया ९ ओतारिता १० इति पदाङ्किता दश सूत्रश्लोका वर्तन्ते । एतदनुसारेण १६० तः १७७ सूत्रश्लोकपाठभेदा ज्ञेयाः ॥ १. तेउम्मि खं२ जे० हाटी० ॥
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