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एक अनुशीलन किया। भगवान् कांपिल्यपुर पधारे, वहाँ पर (९९) रोहिणी और (१००) नवमिका ने प्रव्रज्या ग्रहण की। भगवान् साकेत नगर में पुनः पधारे तो वहाँ पर (१०१) अचला और (१०२) अप्सरा ने दीक्षा ग्रहग की। एक बार भगवान् वाराणसी पधारे। उस समय (१०३) कृष्णा (१०४) कृष्णाराजि, ने और राजगृह में (१०५) रामा और (१०६) रामरक्षिता ने श्रावस्ती में (१०७) वसु और (१०८) वसुगुप्ता ने कोशांबी में (१०९) वसुमित्रा (११०) वसुंधरा ने दीक्षा ग्रहण की थी। ये सभी साध्वियाँ चारित्र की विराधक हो गई थी। विराधना के कारण समी देवियों के रूप में उत्पन्न हुई, पर देवियों का आयुष्य पूर्णकर वे महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगी और वहाँ से विशुद्ध चारित्र का आराधन कर मोक्ष जाएँगी।
- देवेन्द्रमुनि शास्त्री
श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय उदयपुर (राज.) दि २५-११-१९८०
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