SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक अनुशीलन शकुन:प्रस्तुत अध्ययन में जब जिनपालित आर जिनरक्षित समुद्रयात्रा के लिए प्रस्थित होते है तब वे शकुन देखते हैं। शकुन का अर्थ 'सूचित करने वाला' है। जो भविष्य में शुभाशुभ होने बाला है उसका पूर्वाभास शकुन के द्वारा होता है। आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से भी प्रत्येक घटनाओं का कुछ न कुछ पूर्वाभास होता है। शकुन कोई अन्धविश्वास या रूढ परम्परा नहीं है। यह एक तथ्य है। अतीत काल में स्वप्नविद्या अत्यधिक विकसित थी। शकुनदर्शन की परम्परा प्रागैतिहासिक काल से चलती आ रही है। कथा-साहित्य का अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि जन्म, विवाह, बहिर्गमन, गृह प्रवेश और अन्यान्य मांगलिक प्रसंगों के अवसर पर शकुन देखने का प्रचलन था। गृहस्थ तो शकुन देखते ही थे, श्रमण भी शकुन देखते थे। विशेष जिज्ञासु बृहत्कल्प भाष्य,* निशीथ भाष्य*", आवश्यकचूर्णि*** आदि में श्रमणों के शकुन देखने के प्रसंग दे व सकते हैं। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार एक वस्तु शुभ मानी जाती है और वही वस्तु दूसरी परिस्थितियों में अशुभ भी मानी जाती है। एतदर्थ शकुन विवेचन करनेवाले ग्रंथों में मान्यता-भेद भी दृग्गोचर होता है। जन और जैनेतर साहित्य में शकुन के संबंध में विस्तार से विवेचन ह, पर हम यहाँ उतने विस्तार में न जाकर संक्षेप में ही प्राचीन ग्रंथों के आलोक में शुभ और अशुभ शकुन का वर्णन प्रस्तुत कर रहे हैं। बाहर जाते समय यदि निम्न शकुन होते हैं तो अशुभ माना जाता है (१) पथ में मिलनेवाला पथिक अत्यन्त गंदे वस्त्र धारण किये हो।१७६ (२) सामने मिलनेवाले व्यक्ति से सिर पर काष्ठ का भार हो। (३) मार्ग में मिलनेवाले व्यक्ति के शरीर पर तेल मला हुआ हो। (४) पथ में मिलनेवाला पथिक वामन या कुब्ज हो। (५) मार्ग में मिलनेवाली महिला वृद्धा कुमारी हो। शुभ शकुन इस प्रकार हैं(१) घोड़ों का हिनहिनाना (२) छत्र किये हुए मयूर का केकारव१७७ (३) बाई और यदि काक पंख फड़फड़ाता हुआ शब्द करे । (४) दाहिनी ओर चिंघाड़ते हुए हाथी का शब्द करना और पृथ्वी को प्रताडना। (५) सूर्य के सम्मुख बैठे हुए कौए द्वारा बहुत तीक्ष्ण शब्द करना। (६) दाहिनी ओर कौए का पंखों को ढीला कर व्याकुल रूप में बैठना। (७) रीछ द्वारा भयंकर शब्द। (८) गीध का पंख फड़फड़ाना। (९) गर्दभ द्वारा दाहिनी ओर मुड़कर रेंकना। ___ * (ख) बृहकल्प-१. १९२१-२४; १. २८१०-३१॥ ** (ग) निशीथभाष्य--१९. ७०५४ -५५; १९. ६०७८-६०९५॥ *** (घ) आवश्यकचूर्णि-२ पृ. २१८॥ १७६. ओधनियुक्ति॥ १७७. (क) पद्मचरित्र ५४, ५७, ६९, ७०, ७२, ८१, ७३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001021
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Dharmachandvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1990
Total Pages737
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy