________________
एक अनुशीलन
काम सूत्र
ज्ञाता सूत्र
(६२) वैनयिकी (६३) वैजयिकी
(४६) व्यूह (४७) प्रतिव्यूह (५०) चक्रव्यूह (५१) गरुडव्यूह (५२) शकट व्यूह (५३) युद्ध (५४) नियुद्ध (५५) युद्धातियुद्ध (५६) दृष्टियुद्ध (५७) मुष्टियुद्ध (५८) बाहुयुद्ध (५९) लतायुद्ध
(६०) इषुशास्त्र (६१) छरूपवाद (६२) धनुर्वेद (६४) व्यायामिकी
(४४) स्कंधावारमान पुरुषों की भांति महिलाओं की कलाओं का भी प्रस्तुत आगम में उल्लेख है। पर यहाँ उनके नाम नहीं बताये गये हैं। जंबूद्वीपप्रशप्ति ११२ में महिलाओं की चौसठ कलाओं के नाम इस प्रकार हैं
(१)नृत्य (२) औचित्य (३) चित्र (४) वादित्र (५) मंत्र (६) तंत्र (७) ज्ञान (८) विज्ञान (९) दम्भ (१०) जलस्तंभ (११) गतिमान (१२) तालमान (१३) मेघवृष्टि (१४) फलाकृष्टि (१५) आरामरोपण (१६) आकारगोपन (१७) धर्मविचार (१८) शकुनसार (१९) क्रियाकल्प (२०) संस्कृतजल्प (२१) प्रासादनीति (२२) धर्मनीति (२३) वर्णिकावृद्धि (२४) सुवर्णसिद्धि (२५) सुरभितैलकरण (२६) लीलासंचरण (२७) हयगज-परीक्षण (२८) पुरुष-स्त्री लक्षण (२९) हेमरत्नभेद (३०) अष्टादश लिपि परिच्छेद (३१) तत्काल बुद्धि (३२) वस्तुसिद्धि (३३) काम विक्रिया (३४) वैद्यक क्रिया (३५) कुम्भभ्रम (३६) सारिश्रम (३७) अंजन योग (३८) चूर्णयोग (३९) हस्तलाघव (४०) वचनपाटव (४१) भोज्य विधि (४२) वाणिज्य विधि (४३) मुखमण्डन (४४) शालिखण्डन (४५) कथाकथन (४६) पुष्पग्रन्थन (४७) वक्रोक्ति (४८) काव्य शक्ति (४९) स्फारविध वेश (५०) सर्वभाषा विशेष (५१) अभिवादन ज्ञान (५२) भूषणपरिधान (५३) भृत्योपचार (५४) गृहाचार (५५) व्याकरण (५६) परनिराकरण (५७) रन्धन (५८) केशबन्धन (५९) वीणानाद (६०) वितण्डावाद (६१) अंकविचार (६२) लोकव्यवहार (६३) अन्त्याक्षरिका (६४) प्रश्नप्रहेलिका
केलदि श्रीबसवराजेन्द्र ने “शिवतत्त्वरत्नाकर' में भी चौसठ कलाओं का निर्देश इस प्रकार है
(१) इतिहास (२) आगम (३) काव्य (४) अलंकार (५) नाटक (६) गायकत्व (७) कवित्व (८) कामशास्त्र (९) दुरोदर (धूत) (१०) देशभाषालिपिज्ञान (११) लिपिकर्म (१२) वाचन (१३) गगक (१४) व्यवहार (१५) स्वरशास्त्र (१६) शकुन (१७) सामुद्रिक (१८) रत्नशास्त्र (१९) गज-अश्व-रथ कौशल (२०) मल्लशास्त्र (२१) सूपकर्म (२२) भूरुहदोहद (बागवानी) (२३) गंधवाद (२४) धातुवाद (२५) रस संबंधी (२६) खनिवाद (२७) बिलवाद (२८) अग्निस्तंभ (२९) जल स्तम्भ (३०) वाचःस्तंभन (३१) वयःस्तंभन (३२) वशीकरण (३३) आकर्षण (३४) मोहन (३५) विद्वेषण (३६) उच्चाटन (३७) मारण (३८) कालवंचन (३९) परकायप्रवेश (४०) पादुकासिद्धि (४१) वासिद्धि (४२) गुटिकासिद्धि (४३) ऐन्द्रजालिक (४४) अंजन (४५) परदृष्टिवंचन (४६) स्वरवंचन (४७) मणिमंत्र औषधादिकी सिद्धि (४८) चोरकर्म (४९) चित्रक्रिया (५०) लोहक्रिया
११२. अम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति, वक्षस्कार २, पत्र १३९-२ १४०-१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org