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________________ देवे अभिरूवाइ निरूवणाइ [पंचमो उद्देसओ 'असुरे'] [सु. १ - ४. चउव्विहदेवेसु अभिरुव- अणभिरुवाइ कारणनिरूवणं ] १. [१] दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना। तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, एगे असुरकुमारे देवे से णं नो पासादीए नो दरिसणिज्जे नो ५ अभिरूवे नो पंडिरूवे, से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा - वेउव्वियसरीरा य अवेउव्वियसरीरा य । तत्थ णं जे सेवेव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं पासादीए जाव पडिरूवे । तत्थ णं जे से अवेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं नो पासादीए जाव नो पडिरूवे । सु०९-१८, १-५] [२] से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ ' तत्थ णं जे से वेउव्वियसरीरे तं १० 'चेव जाव नो पडिरूवे ' ? ' गोयमा ! से जहानामए इहं मणुयलोगंसि दुवे पुरिसा भवंति -- एगे पुरिसे अलंकियविभूसिए, एगे पुरिसे अणलंकियविभूसिए; एएसि णं गोयमा ! दोहं पुरिसाणं कयरे पुरिसे पासादीये जाव पडिरूवे ? कयरे पुरिसे नो पासादीए जाव नो पडिरूवे ? जे वा से पुरिसे अलंकियविभूसिए, जे वा से पुरिसे अणलंकियविभूसिए १' ' भगवं ! तत्थ णं जे से पुरिसे अलंकियविभूसिए १५ सेणं पुरसे पासादीये जाव पडिरूवे, तत्थ णं जे से पुरिसे अणलंकिय विभूसिए सेणं पुरिसे नो पासादीए जाव नो पडिरूवे ' । सेतेणट्ठेणं जाव नो पडिरूवे । २. दो भंते ! नागकुमारा देवा एगंसि नागकुमारावासंसि ० १ एवं चेव । ३. एवं जाव थणियकुमारा । ४. वाणमंतर - जोतिसिय-वेमाणिया एवं चेव । 9. " इह ' यावत् 'करणात् 'महाकिरिथतराए चेव महासवतराए चेव' त्ति दृश्यम् ” अवृ० ॥ ८११ [सु. ५-७ चउवीसइदंडएसु महाकम्मतर - अप्पकम्मतराइकारणनिरूवणं ] ५. दो भंते! नेरइया एगंसि नेरतियावासंसि नेरतियत्ताए उववन्ना । तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव जांव महावेदणतराए चेव, एगे नेरइए अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेदणतराए चेव, से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा - मायिमिच्छद्दिट्ठउववन्नगा य, अमायिसम्मद्दिट्ठि- २५ उववन्नगा य । तत्थ णं जे से मायिमिच्छद्दिट्ठिउववन्नए नेरतिए से णं महा Jain Education International For Private & Personal Use Only २० www.jainelibrary.org
SR No.001019
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1978
Total Pages679
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_bhagwati
File Size11 MB
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