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________________ धर्मामृत ( सागार) फल्गु-- काकोदुम्बरिका । त्रसान्-स्थूलसूक्ष्मप्राणिकुलाकुलत्वात्तेषाम् । तदाह 'अश्वत्थोदुम्बरप्लक्षन्यग्रोधादिफलेष्वपि। प्रत्यक्षाः प्राणिनः स्थूलाः सूक्ष्माश्चागमगोचराः ॥' [ सो. उपा., २९६ श्लो.] तत्र लौकिका अपि पठन्ति 'कोऽपि क्वापि कुतोऽपि कस्यचिदहो चेतस्य कस्माज्जनः, केनापि प्रविशत्युदुम्बरफलप्रा ......... ......... .... । येनास्मिन्नपि पाटिते विघटिते विस्फोटिते त्रोटिते, निष्पिष्टि परिगालिते विदलिते निर्यात्यासा वा न वा ॥ रागयोगतः। अन्तर्दीपकत्वादिदं मध्वादिष्वपि योज्यम, तत्रापि रागावतारद्वारेणात्मघातस्योक्तत्वात । उक्तंच 'यानि च पुनर्भवेयुः कालोत्सन्नत्रसानि शुष्काणि । भजतस्तान्यपि हिंसा विशिष्टरागादिरूपा स्यात् ।।' [ पुरुषार्थ., ७३ श्लो. ] अपि च 'असंख्यजीवव्यपघातवृत्तिभिर्न धीवरैरस्ति समं समानता। अनन्तजीवव्यपरोपकारिणामुदुम्बराहारविलोलचेतसाम् ।।' [ अमि. श्रा. ५।७० ] ॥१३॥ अथ निशाभोजनागालितजलोपयोगयोर्मद्याद्युपयोगवद्दोषमयत्वात्परिहारमाह रागजीवबधापायभूयस्त्वात्तद्वदुत्सृजेत् ।। रात्रिभक्तं तथा युञ्ज्यान पानीयमगालितम् ॥१४॥ _ विशेषार्थ-आचार्य अमृतचन्द्रने ऊमर, कठूमर, पीपल, बड़, पाकड़के फलोंको त्रसजीवोंकी योनि कहा है। और यह भी कहा है कि काल पाकर जिन फलोंमें वर्तमान त्रस जीव मर जाते हैं उन फलों को खाने में भी विशिष्ट रागादिरूप हिंसा अवश्य होती है। आशय यह है कि गीले फलोंको भी आदमी तभी खाता है जब उसमें उनके प्रति राग होता है। किन्तु जो सूखे फल खाता है उसमें तो उन फलोंके प्रति विशेष राग होता है तभी तो व सूखे फल इकट्ठे करता है। अतः सूखे फल खानेवालेमें रागकी अधिकता होनेसे हिंसा अवश्य होती है ।।१३।। मद्य आदिके सेवनकी तरह रात्रिभोजन और बिना छने जलका उपयोग भी दोषमय है अतः उनके भी त्यागके लिए कहते हैं राग, जीवहिंसा तथा जलोदर आदि रोगोंकी प्रचुरता होनेसे मद्यपान आदिकी तरह रात्रिभोजनको भी छोड़ना चाहिए। तथा वस्त्रसे छाने बिना जलका उपयोग नहीं करना चाहिए ॥१४॥ 'योनिरुदुम्बरयुग्मं प्लक्षन्यग्रोधपिप्पलफलानि । त्रसजीवानां तस्मात्तेषां तद्भक्षणे हिंसा ॥'-पुरुषार्थ., ७२-श्लो. । 'अश्वत्थोदुम्बरप्लक्षन्यग्रोधादिफलेष्वपि । प्रत्यक्षाः प्राणिनः स्थूलाः सूक्ष्माश्चागमगोचराः ॥' -सोम. उपा., २९६ श्लो. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001017
Book TitleDharmamrut Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size10 MB
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