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अथार्हद्भक्तेर्माहात्म्यं द्वाभ्यामाह
सप्तदश अध्याय ( अष्टम अध्याय )
स्पष्टम् ॥ ७५ ॥
एकैवास्तु जिने भक्तिः किमन्येः स्वेष्टसाधनैः । या दोग्धि कामानुच्छिद्य सद्योऽपायानशेषतः ॥७५॥
वासुपूज्याय नमः इत्युक्त्वा तत्संसदं गतः । द्विद्वेवारब्धविघ्नोऽभूत् पद्मः शक्राचितो गणी ॥ ७६ ॥
द्विदेवं – [धन्वन्तरि-विश्वानुलोमचरामरद्वयम् । पद्मः - पद्मरथो नाम मिथिलाना - ] थः । शक्रा - चितः - इन्द्रकृत प्रातिहार्यः ॥ ७६ ॥
अथ भावनमस्कारमाहात्म्यं द्वाभ्यामाह
एकोऽप्यर्हनमस्कारश्चेद्विशेन्मरणे मनः । संपाद्याभ्युदयं मुक्तिश्रियमुत्कयति द्रुतम् ॥७७॥
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स्पष्टम् ॥७७॥।
दोrathiसे जिनभक्तिका माहात्म्य कहते हैं
भगवान् जिनदेव में अकेली ही भक्ति रही, जिनभक्तिसे अतिरिक्त अपनी इष्टसिद्धिके अन्य उपायोंसे क्या प्रयोजन है । जो जिनभक्ति तत्काल समस्त विघ्न-बाधाओंको नष्ट करके मनोरथोंको पूरा करती है ||७५ ||
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विशेषार्थ – विशुद्ध भावपूर्वक आन्तरिक अनुरागको भक्ति कहते हैं । काम निकालने के लिए चापलूसी करनेका नाम भक्ति नहीं है। सच्ची भक्ति किसी स्वार्थसे नहीं होती । वह तो गुणानुरागसे होती है । जिनदेवके गुणों में सच्चा अनुराग ही जिनभक्ति है । उसके बिना समस्त पुरुषार्थोंके साधन व्यर्थ हैं ॥ ७५॥
दो देवोंके द्वारा विघ्न उपस्थित किये जानेपर मिथिलाका स्वामी पद्मरथ 'वासुपूज्य स्वामीको नमस्कार हो' ऐसा कहकर वासुपूज्य स्वामीके समवसरण में गया । और उनका गणधर होकर इन्द्रसे पूजित हुआ || ७६ ||
विशेषार्थ - मिथिलापुरीका राजा पद्मरथ वासुपूज्य स्वामीके दर्शनों के लिए चला । मार्ग में उसकी परीक्षा लेनेके लिए दो देवोंने उसपर विघ्न करना शुरू किया । किन्तु हवाके साथ घोर वर्षा, उल्कापात, सिंहोंका उपद्रव आदि करनेपर भी पद्मरथ विचलित नहीं हुआ । तब उन्होंने मायामयी कीचड़ रचकर राजा सहित हाथीको उसमें डुबा दिया। डूबते हुए राजाके मुखसे निकला - ' वासुपूज्य स्वामीको नमस्कार हो ।' प्रसन्न होकर देवोंने अपनी माया हटा ली और राजाका सम्मान किया। राजा वासुपूज्य स्वामीके समवसरण में जाकर दीक्षा लेकर भगवान्का गणधर बना और मुक्त हो गया ॥ ७६॥
दो इलोकों से भावनमस्कार का माहात्म्य कहते हैं
मरते समय मन में यदि अकेला 'अर्हन्त भगवान्को नमस्कार हो' यह भावरूपसे व्याप्त रहे तो महान् ऋद्धिको प्राप्त कराकर शीघ्र मोक्षलक्ष्मीको उत्कण्ठित करता है । अर्थात् अनन्तर भव में अथवा दो-तीन भवोंमें परम पदको प्राप्त कराता है ||७७ ||
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