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३२८
विषयानुक्रमणिका पूरब या उत्तरको सिर करके लेटे ३२३ समस्त संघ ध्यानमें लीन रहे
३३६ समाधिमरणके योग्य संस्तर ३२४ निर्यापकाचार्यका सम्बोधन
३३७ लिंगमें दोष होनेपर भी वस्त्रत्याग आवश्यक ३२४ सम्यक्त्वका माहात्म्य
३३८ आर्यिका भी अन्त समय वस्त्रत्याग करे ३२६ अर्हद्भक्तिका माहात्म्य
३३९ पाँच प्रकारकी शुद्धि
भावनमस्कारका माहात्म्य
३३९ पाँच प्रकारका विवेक ३२८ ज्ञानोपयोगका माहात्म्य
३४० समाधिमरणके अतिचार ३२९ पांच महाव्रतोंका महत्त्व
३४१ संस्तरपर आरूढ़ होनेके पश्चात् निर्यापकाचार्य
व्यवहाराराधनाके पश्चात् निश्चय आराधनाका का कर्तव्य
विधान
३४५ आहारत्यागकी विधि
निश्चय संन्यासका स्वरूप
३४६ आहारत्यागके पश्चात् स्निग्धपान
परीषह या उपसर्ग आनेपर बोध
३४६ अन्तमें गर्मजल
३३३ उसके पश्चात् समस्त आहारका त्याग ३३५
निश्चय रत्नत्रयका स्वरूप और उसके धारणकी रोगादिकी अवस्थामें जलमात्र अन्तमें उसका
प्रेरणा
३५० भी त्याग
३३६ विधिपूर्वक समाधिमरणसे आठवें भवमें मोक्ष ३५२
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