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धर्मामृत (सागार) 'भव्येन शक्तितः कृत्वा मौनं नियतकालिकम् ।
जिनेन्द्रभवने देया घण्टेका समहोत्सवम् ॥' [ अमि. श्रा. १२।१०९] निर्वाहः । उक्तं च
'न सार्वकालिके मौने निर्वाहव्यतिरेकतः।
उद्योतनं परं प्राज्ञैः किञ्चनापि विधीयते ॥' [ अमि. श्रा. १२।११० ] ॥३७॥ अथावश्यकादिषु शक्तितः सर्वदापि मौनविधानेन वाग्दोषोच्छेदमाह
'आवश्यके मलक्षेपे पापकार्ये च वान्तिवत् ।
मोन कुवोत शश्वद्वा भूयोवाग्दोषविच्छिदे ॥३८॥ मलक्षेपे–विण्मूत्रोत्सर्गे । पापकार्ये-हिंसादिकर्मणि परेण क्रियमाणे । च शब्देन स्नानमैथुनादी च । यतेस्तु भ्रामरीप्रवेशेऽपि । वान्तिवत्-छाँ यथा छर्दनादनन्तरमाचमनं यावदित्यर्थः । कायदोषापेक्षया बहुतराः ॥३८॥ अथ सत्याणुव्रतलक्षणार्थमाह
कन्यागोक्षमालोककूटसाक्षिन्यासापलापवत् ।
स्यात्सत्याणुव्रती सत्यमपि स्वान्यापदे त्यजन् ॥३९॥ विशेषार्थ-व्रतकी पूर्ति होनेपर उसका माहात्म्य प्रकट करने के लिए जो समारोह किया जाता है उसे उद्योतन कहते हैं। यह उद्योतन जिसे लोकमें उद्यापन कहते हैं, नियतकालवे कार किये गये व्र
गये व्रतकी पूर्ति होनेपर किया जाता है। जीवनपर्यन्तके लिए धारण किये गये व्रतोंका उद्यापन तो उन व्रतोंको जीवनपर्यन्त पालना ही है। यहाँ जीवनपर्यन्त मौनव्रतका मतलब यह नहीं है कि इस व्रतका धारी जीवन-भर कभी बोलेगा ही नहीं। किन्तु जिस-जिस समय मौनका विधान है उस-उस समयमें वह जीवनपर्यन्त मौन रखता है ॥३७॥
आगे अन्य जिन कार्यों के समय मौन रखना आवश्यक है उन्हें बतलाते हैं
साधु और श्रावकको वमनकी तरह सामायिक आदि छह आवश्यकोंमें, मलमूत्र त्यागते समय, यदि कोई पाप कार्य करता हो तो मौन धारण करना चाहिए। अथवा शारीरिक दोषोंकी अपेक्षा बहुत अधिक वचन सम्बन्धी दोषोंको दूर करनेके लिए
दा मौन धारण करना चाहिए ॥३८॥
विशेषार्थ-जैसे वमन होनेपर जबतक मुखशुद्धि नहीं करते तबतक मौन रहते हैं उसी तरह सामायिक देवपूजा आदि षट्कर्म करते समय, मलमूत्र त्याग करते समय, अन्य कोई बुरा कार्य करता हो तो उस समय और 'च' शब्दसे स्नान-भोजन और मैथुन करते समय मौन रहना चाहिए। इसके साथ ही बिना आवश्यकताके नहीं बोलना चाहिए; क्योंकि कठोर आदि वचन मुखसे निकल जानेपर पापकर्मका आस्रव होता है और परस्परमें कलह होती है । अतः मौन हो श्रेयस्कर है ॥३८॥
अब सत्याणुव्रतका स्वरूप कहते हैं
कन्याअलीक, गोअलीक, क्ष्मालीक, कूटसाक्षि और न्यासापलापकी तरह जिससे अपने पर या दूसरोंपर विपत्ति आती हो ऐसे सत्यको भी छोड़ता हुआ सत्याणुव्रती होता है ॥३९।। १. 'आवश्यके मलक्षेपे पापकार्ये विशेषतः । मौनी न पीड्यते पापैः संनद्धः सायकैविना' ।।-अमि.श्रा.१२।१११॥ २. साक्ष्य -मु.।
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