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एतदेव चानुसरन् हेमचन्द्रोऽपीदमवोचत्
धर्मामृत (सागार )
अथ स्थूलविशेषणं व्याचष्टे --
'पङ्गु कुष्ठिकुणित्वादि दृष्ट्वा हिंसाफलं सुधीः ।
निरागस्त्रसजन्तूनां हिंसां संकल्पतस्त्यजेत् ॥' [ योगशास्त्र २।१९ ] ॥५॥
स्थूल हिंस्याद्याश्रयत्वात् स्थूलानामपि दुर्दृशाम् । तत्त्वेन वा प्रसिद्धत्वाद् बधादि स्थूलमिष्यते ॥ ६ ॥
स्थूलेत्यादि । स्थूला – बादरा हिंस्यादयो - हिंस्य भाष्य- मोष्य - परिभोग्यपरिग्राह्या आश्रया आलम्बनानि यस्य तत्तदाश्रयं तद्भावात् । तत्त्वेन - वधादिभावेन । वा शब्देन स्थूलकृतत्वाच्चेति समुच्चीयते ||६|| इदानीमत्सर्गिक महिंसाणुव्रतं व्याचष्टे
सम्यक्त्व विशुद्धि और व्रतविशुद्धिको समझा । तथा भगवान्की आराधना करके सम्यग्दर्शनपूर्वक व्रतशीलावलीको जो मुक्तिकी निर्मल कण्ठीके समान है, धारण किया ।'
तथा उसी राजर्षि भरतके स्वप्नोंकी शान्तिके लिए शान्तिकर्म करनेके अनन्तर चार प्रकारके श्रावक धर्मका पालन करते हुए शीलका वर्णन इस प्रकार किया है - 'महाराज भरतने शीलोंके अनुपालन में महान् प्रयत्न किया। क्योंकि शीलकी रक्षा करनेसे आत्माकी रक्षा होती है | व्रतोंके पालनका नाम ही शील है । गृहस्थोंके स्थूल हिंसा विरति आदि व्रत कहे हैं । भावना सहित उन व्रतोंका यथायोग्य पालन करते हुए प्रजापालक भरत गृहस्थोंका अग्रणी हो गया ।'
तथा शान्तिपुराण में असग महाकविने अपराजित राजाके श्रावक धर्म स्वीकार करनेका कथन किया है । यथा
'भव्यत्वभाव के अनुग्रहसे तत्त्वोंमें रुचि होनेपर अपराजित राजाने पाँच अणुव्रतों को स्वीकार किया ।'
इसीका अनुसरण करते हुए हेमचन्द्राचार्यने भी कहा है
'हिंसाका फल पंगुपना, कुष्टिपना, कानापना आदि देखकर बुद्धिमानको निरपराध त्रस जन्तुओं की संकल्पी हिंसा छोड़ देनी चाहिए | ||५||
स्थूल विशेषणको स्पष्ट करते हैं
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स्थूल rita हिंसा, स्थूल झूठ, स्थूल चोरी आदिके आश्रय होनेसे तथा स्थूल बुद्धिवाले मिथ्यादृष्टियों की दृष्टिमें भी हिंसा, झूठ आदि के रूपमें प्रसिद्ध होनेसे हिंसा आदिको स्थूल कहा है ||६||
विशेषार्थ -- स्थूलका अर्थ होता है मोटा । यह सूक्ष्मका उलटा है। हिंसा आदिको स्थूल कहने के दो हेतु दिये हैं । प्रथम, चलते-फिरते दिखाई देते प्राणीकी हिंसा स्थूल हिंसा है क्योंकि जिसकी हिंसा की गयी वह स्थूल है, सूक्ष्म नहीं है । इसी तरह स्थूल झूठ वगैरह भी समझना। दूसरे, ऐसी हिंसा वगैरहको साधारण लोग भी हिंसा, झूठ आदि कहते हैं । अतः उसे स्थूल कहा है । सारांश यह है कि जिसे आम लोग भी हिंसा, झूठ, चोरी, और परिग्रह कहते हैं उनका त्याग अणुव्रती करता है ||६||
दुराचार
अब अहिंसाणुव्रता लक्षण कहते हैं
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