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विवेचन-पद्धति
प्रश्नोत्तर शैली
प्रस्तुत षट्खण्डागम में प्रति गद्य विषय का विवेचन प्राय: प्रश्नोत्तर के रूप में किया गया है । कहीं पर यदि एक सूत्र में विवक्षित विषय से सम्बद्ध प्रश्न को उठाकर उसका उत्तर दे दिया गया है तो कहीं पर एक सूत्र में प्रश्न को उठाकर आवश्यकतानुसार उसका उत्तर एक व अनेक सूत्रों में भी दिया गया है । जैसे
१. जीवस्थान-द्रव्यप्रमाणानुगम में एक ही सूत्र (६) के द्वारा प्रश्नोत्तर के रूप में सासादन-सम्यग्दृष्टि आदि संयतासंयत पर्यन्त चार गुणस्थानवी जीवों के द्रव्यप्रमाण का उल्लेख कर दिया गया है।
इसी प्रकार यहीं पर प्रश्नोत्तर के रूप में ही सूत्र ७ में प्रमत्तसंयतों और सूत्र ८ में अप्रमत्तसंयतों के द्रव्यप्रमाण को प्रकट किया गया है।
२. इसके पूर्व इसी द्रव्यप्रमाणानुगम में सूत्र २ में मिथ्यादष्टि जीवों के द्रव्यप्रमाण विषयक प्रश्न को उठाते हुए उसी सूत्र में उत्तर भी दे दिया गया है कि वे अनन्त हैं । आगे सूत्र ३ के द्वारा उनके प्रमाण को काल की अपेक्षा और सूत्र ४ के द्वारा क्षेत्र की अपेक्षा कहा गया है । अब रहा भाव की अपेक्षा उनका द्रव्यप्रमाण, सो उसके विषय में आगे के सूत्र ५ में यह कह दिया गया है कि द्रव्य, क्षेत्र और काल इन तीनों का जान लेना हो भाव प्रमाण है।
__इसी प्रकार यह प्रश्नोत्तर शैली जीवस्थान के क्षेत्रानुगम आदि आगे के अनुयोगद्वारों में भी चालू रही है। विशेष इतना है कि प्रसंग के अनुरूप उसके प्रथम सत्प्ररूपणा अनुयोगद्वार में और अन्तिम अल्पबहुत्वानुगम में उपर्युक्त प्रश्नोत्तर शैली को चालू नहीं रखा जा सका है।
आगे इस जीवस्थान खण्ड से सम्बद्ध नौ चलिकाओं में से प्रथम आठ चूलिकाओं में भी यह प्रश्नोत्तर शैली अनावश्यक रही है। किन्तु अन्तिम गति-आगति चूलिका में गति-आगति आदि विषयक चर्चा उसी प्रश्नोत्तर शैली में की गई है।
द्वितीय खण्ड क्षुद्रकबन्ध में सर्व प्रथम सामान्य से बन्धक-अबन्धक जीवों का विचार करके उसके अन्तर्गत स्वामित्व आदि ११ अनुयोगद्वारों में चौथे 'नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय'
और अन्तिम अल्पबहुत्वानुगम को छोड़कर शेष ६ अनुयोगद्वारों में विवक्षित विषय का विवेचन उसी प्रश्नोत्तर शैली में किया गया है ।
इसी प्रकार 'बन्धस्वामित्वविचय' आदि आगे के खण्डों में कुछ अपवादों को छोड़कर तत्त्व का निरूपण उसी प्रश्नोत्तर शैली से किया गया है।
वेदना खण्ड के अन्तर्गत 'वेदनाद्रव्यविधान' अनुयोगद्वार में 'द्रव्य की अपेक्षा उत्कृष्ट
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