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(२) नरकादि गतियों से सम्यक्त्वोपत्ति के बाह्य कारण
(गति-आगति चूलिका सूत्र १-४३, पु० ६, पृ० ४१८-३७)
गति
जिनबिम्बदर्शन | धर्मश्रवण
...
जाति
वेदना| भिभव
सम्यक्त्वोत्पत्ति के योग्य काल
नरकगति प्रथम, द्वितीय व तृतीय पृथिवी । चौथी से सातवीं
पर्याप्त होने के समय से अन्तर्मुहूर्त पश्चात्
जिनबिम्बदर्शन धर्मश्रवण
२. तियंचगति
पंचेन्द्रिय, संशी, गर्भज व पर्याप्त
जातिस्मरण
दिवस-पृथक्त्व के
पश्चात्
३. मनुष्यगति गर्भज-पर्याप्ति | जिनबिम्बदर्शन धर्मश्रवण । जाति
आठ वर्ष के ऊपर
स्मरण देवगति भवनवासी से 1 जिनमहिम
देवद्धिदर्शन अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् शतार-सहस्रार || दर्शन कल्प पर्यन्त
आरण-अच्युत
नौ ग्रेवेयक
अनुदिश से सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त
नियम से सब सम्यग्दृष्टि ही होते हैं।
विशेष१. तियंच मिथ्यादष्टियों में एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, असंशी, सम्मच्छिम व अपर्याप्त
सम्यक्त्वोत्पादन के योग्य नहीं होते ।-सूत्र १३-१८ २. मनुष्यों में सम्मूच्छिम व अपर्याप्त सम्यक्त्वोत्पादन के योग्य नहीं होते।-सूत्र २३-२६ ३. देवों में अपर्याप्त सम्यक्त्वोत्पादन के योग्य नहीं होते । -सूत्र ३१-३३
७७६/पटवण्डागम-परिशीलन
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