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________________ १ २ ३ ४ ६ ७ ८ विशेषता प्रकृतिभेद ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय वेदनीय मोहनीय आयु नाम (आनुपूर्वी तक ) नाम अगुरुलघु आदि गोत्र अन्तराय प्रकृति स० चूलिका ( सूत्र ) १३-१४ १५-१६ १७-१८ १६-२४ २५-२६ २७-४१ ४२-४४ ४५ ४६ Jain Education International प्रकृति अनु० ( सूत्र ) ज्ञानावरणीय से सम्बद्ध सूत्रसंख्या की विषमता का कारण यह रहा है कि 'प्रकृति' अनुयोगद्वार में आभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय (सूत्र २२-४२), श्रुतज्ञानावरणीय (४३-५०), अवधिज्ञानावरणीय (५१ - ५६ ) और मन:पर्ययज्ञानावरणीय ( ६०-७८ ) के अवान्तरभेदों की भी प्ररूपणा की गयी है । केवलज्ञानावरणीय की एक ही प्रकृति का उल्लेख करके उस प्रसंग में केवलज्ञान के महत्त्व को विशेष रूप से प्रकट किया गया है (७०-८३) । इसी प्रकार 'प्रकृति' अनुयोगद्वार में नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी आदि चार आनुपूर्वी प्रकृतियों के अवान्तर भेदों की भी पृथक्-पृथक् प्ररूपणा की गयी है व उनके अल्पबहुत्व को भी दिखलाया गया है (११५-३२) । इस पुनरुक्ति के प्रसंग में धवला में कुछ स्पष्टीकरण नहीं किया गया है । २०-२१ ८४-८६ ८७-८८ ८६-६७ ६८-६६ १००-१४ १३३ १३४-३५ १३६-३७ सूत्रसूचित विषय की अप्ररूपणा इस प्रकार ऊपर सूत्रों से सम्बन्धित पुनरुक्ति की कुछ चर्चा की गयी है। अब आगे हम यह भी दिखलाना चाहते हैं कि मूल ग्रन्थ में कुछ ऐसे भी प्रसंग प्राप्त होते हैं जिनके प्रारम्भ में प्रतिपाद्य विषय की प्ररूपणा का संकेत करके भी सूत्रकार द्वारा उनकी प्ररूपणा की नहीं गयी है । सूत्रकार द्वारा अप्ररूपित ऐसे विषयों की प्ररूपणा धवलाकार ने की है । उदाहरण के लिए (१) वर्गणाखण्ड के अन्तर्गत 'स्पर्श' अनुयोगद्वार को प्रारम्भ करते हुए उसकी प्ररूपणा में सूत्रकार द्वारा स्पर्शनिक्षेप' व 'स्पर्शनयविभाषणता' आदि १६ अनुयोगद्वारों का निर्देश करके 'स्पर्शनिक्षेप' के प्रसंग में नामस्पर्शन आदि तेरह स्पर्शभेदों का नामनिर्देश किया गया है । १. अवधिज्ञानावरणीय के और मन:पर्ययज्ञानावरणीय के प्रसंग में उन ज्ञानों के भेद-प्रभेद व उनके विषयभेद की भी कुछ प्ररूपणा की गयी है । २. धवला, पु० १३, पृ० १ ३ सूत्र १-४ For Private & Personal Use Only वीरसेनाचार्य की व्याख्यान-पद्धति / ७०३ www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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