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________________ गयी है उसमें शब्द और अर्थ की अपेक्षा कितनी समानता है, इसे संक्षेप में इस प्रकार देखा जो सकता है प्रसंग धवला पु० १ ( पृष्ठ ) ति०प०महाधि० १ ( गाथा) १. मंगल मंगल के ६ भेद क्षेत्र मंगल कालमंगल भावमंगल मंगल के पर्यायशब्द मंगल की निरुक्ति मंगल के स्थान व फल २. निमित्त ३. हेतु ४. प्रमाण ५. नाम ६. कर्ता १० २८-२६ २६ - २६ ३१-३२ ३२-३४ ३६-४१ १. धवला पु० १, पृ० ५७-५८ २. वही, पृ० ६५ ६७ ५४-५५ ५५-५६ ६० ३. वही, पु० ६, पृ० १३०-३१ ४. ति०प० १, ४,१४७६-६२ ६१८ / घट्खण्डागम-परिशीलन ६० Jain Education International १८ २१-२४ २४-२६ २७ ८ ६०-६५ व ७२ ५५-८१ ( २ ) इसके अतिरिक्त धवला में प्ररूपित अन्य भी कितने ही विषयों के साथ तिलोयपणती की समानता देखी जाती है । जैसे- राजा, १८ श्रेणियाँ, अधिराज, महाराज, अर्धमण्डलिक, माण्डलिक, महामाण्डलिक, त्रिखण्डपति (अर्धचक्री), षट्खण्डाधिपति (सकलचक्री) और तीर्थंकर आदि । ६-१७ २७-३१ विशेषता यह रही है कि धवलाकार ने जहाँ उपर्युक्त राजा आदि के विषय में अन्यत्र से उद्धृत गाथाओं व श्लोकों में विचार किया है, वहाँ तिलोयपण्णत्ती में उनका विचार मूलग्रन्थगत गाथाओं में ही किया गया है।" (३) धवला में जीवस्थान के अवतार के प्रसंग में तथा आगे चलकर 'वेदना' खण्ड के अवतार के प्रसंग में यथाक्रम से केवलियों, श्रुतकेवलियों, अंगश्रुत के धारकों का निर्देश किया गया है । ३२-३४ ३५-५२ तिलोयपण्णत्ती में 'जम्बूद्वीप' अधिकार के आश्रय से भरतक्षेत्र में सुषमादि छह कालों की प्ररूपणा करते हुए उस प्रसंग में उपर्युक्त केवलियों आदि का उल्लेख किया गया है, जिसमें एक-दो नामों की भिन्नता को छोड़कर प्रायः दोनों में समानता है । * For Private & Personal Use Only ५३ ५४ (४) महावीर के निर्वाण के पश्चात् उत्पन्न होनेवाले शक राजा के काल से सम्बन्धित विभिन्न मतों का उल्लेख धवला में इस प्रकार किया गया है - प्रथम मत ६०५ वर्ष व पांच www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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