________________
पंजिकाकार द्वारा विषय के स्पष्टीकरण में वीरसेनाचार्य की व्याख्यानद्धति को तो अपनाया गया है, पर निर्वाह उसका नहीं किया जा सका है।
पंजिका में विषय के स्पष्टीकरण का लक्ष्य प्राय: अल्पबहुत्व से सम्बन्धित प्रसंग रहे हैं। उनके स्पष्टीकरण में अंकसंदृष्टियाँ बहुत दी गयी हैं, पर वे सुबोध नहीं हैं। उनके विषय में कुछ संकेत भी नहीं किया गया है। इन संदृष्टियों की पद्धति को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि प्रस्तुत पंजिका की रचना गोम्मटसार की 'जीवतत्त्व-प्रदीपिका' टीका के पश्चात् हुई है। उसके रचयिता सम्भवतः दक्षिण के कोई विद्वान् रहे हैं।
पंजिकाकार की भाषा भी सुबोध व व्यवस्थित नहीं दिखती।
सत्कर्मपंजिका / ५७१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org