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________________ संतकम्मपंजिया (सत्कर्मपंजिका) परिचय जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, आचार्य भूतबलि ने मूल 'षट्खण्डागम' में 'महाकर्मप्रकृतिप्राभृत' के अन्तर्गत २४ अनुयोगद्वारों में से प्रारम्भ के कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म, प्रकृति और बन्धन इन छह अनुयोगद्वारों की ही प्ररूपणा की है। शेष निबन्धनादि १८ अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा उन्होंने नहीं की। उनकी प्ररूपणा षट्खण्डागम के टीकाकार आचार्य वीरसेन ने अन्तिम सूत्र को देशामर्शक कहकर अपनी धवला टीका में की है।' उन १८ अनुयोगद्वारों में निबन्धन (७), प्रक्रम (८), उपक्रम (8) और उदय (१०) इन चार अनुयोगद्वारों पर 'सत्कर्मपंजिका' नाम की एक पंजिका उपलब्ध होती है। वह किसके द्वारा और कब लिखी गयी है, इसका संकेत वहां कहीं कुछ नहीं देखा जाता है। इस पंजिका को षट्खण्डागम की १५वीं पुस्तक में परिशिष्ट के रूप में प्रकाशित किया गया है। सम्पादन के समय उसकी जो हस्तलिखित प्रति मूडबिद्री से प्राप्त हुई थी वह बहुत अशुद्ध और बीच-बीच में कुछ स्खलित भी रही है । उसके प्रारम्भ में पंजिकाकार के द्वारा जिस गाथा में मंगल किया गया है उसका पूर्वार्द्ध भाग स्खलित है। उत्तरार्द्ध उसका इस प्रकार है वोच्छामि संतकम्मे पंचि[जियस्वेण विवरणं सुमहत्थं ॥ इसमें पंजिकाकार ने 'सत्कर्म' के ऊपर पंजिका के रूप में महान् अर्थ से परिपूर्ण विवरण' के लिखने की प्रतिज्ञा की है । गाथा के पूर्वार्ध में उन्होंने क्या कहा है, यह ज्ञात नहीं हो सका। सम्भव है, वहां उन्होंने मंगल के रूप में किसी तीर्थकर या विशिष्ट आचार्य आदि का स्मरण किया हो । अन्तिम पुष्पिकावाक्य इस प्रकार है ॥ एवमुदयाणिओगद्दारं गदं॥ ॥ समाप्तोऽयमुग्रन्थः ॥ श्रीमन्माघनंदिसिद्धान्तदेवर्गे सत्कर्मदपंजियं श्रीमदुदयादित्यं वरदं । मंगलमहः । आगे 'बस्यांत्यप्रशस्ति' के रूप में और कुछ कनाड़ी में लिखा गया उपलब्ध होता है। १. धवला, पु० १५, पृ० १ २. सम्भव है, वह सभी (१८) अनुयोगद्वारों पर लिखी गयी है, किन्तु उपलब्ध वह निबन्धन आदि चार अनुयोगद्वारों पर ही है। ३. यह प्रति पं० लोकनाथजी शास्त्री के शिष्य पं० देवकुमारजी के द्वारा मुडबिद्री के 'वीर वाणीविलास, जैन सिद्धान्त भवन' को प्रति पर से लिखी गयी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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