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________________ की प्ररूपणा उन्होंने इसमें नहीं की है। उन शेष अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा धवलाकार आचार्य वीरसेन ने की है। उसे प्रारम्भ करते हुए वे कहते हैं कि भूतबलि भट्टारक ने इस सूत्र (५,६,७६७, पु० १४) को देशामर्शक रूप से लिखा है, इसलिए हम इस सूत्र से सूचित शेष अठारह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा कुछ संक्षेप से करते हैं।' ___ तदनुसार उन्होंने यथाक्रम से उन अठारह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा इस प्रकार की है७. निबन्धन अनुयोगद्वार ___ यहाँ 'निबन्धन' की 'निबध्यते तदस्मिन्निति निबन्धनम्' इस प्रकार निरुक्ति करते हुए यह अभिप्राय प्रकट किया गया है जो द्रव्य जिसमें निबद्ध या प्रतिबद्ध है, उसका नाम निबन्धन है। वह छह प्रकार का है-नामनिबन्धन, स्थापनानिबन्धन, द्रव्यनिबन्धन, क्षेत्रनिबन्धन, कालनिबन्धन और भावनिबन्धन। इनमें जिस नाम की वाचक रूप से प्रवृत्ति का जो अर्थ आलम्बन होता है उसे नामनिबन्धन कहते हैं, क्योंकि उसके बिना नाम की प्रवृत्ति सम्भव नहीं है। यह नामनिबन्धन अर्थ, अभिधान और प्रत्यय के भेद से तीस प्रकार का है । इनमें अर्थ एक जीव व बहुत जीव एवं अजीव आदि के भेद से आठ प्रकार का है।' इन आठ अर्थों के विषय में जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे प्रत्ययनिबन्धन कहा जाता है । जो नामशब्द प्रवृत्त होकर अपने आपका ही बोधक होता है वह अभिधाननिबन्धन कहलाता है।... _ विकल्प के रूप में यहां धवलाकार ने यह भी कहा है-अथवा यह सब तो द्रव्यादिनिबन्धनों में प्रविष्ट होता है, इसलिए इसे छोड़कर 'निबन्धन' शब्द को ही 'नामनिबन्धन' के रूप में ग्रहण करना चाहिए। ऐसा होने पर पुनरुक्त दोष की सम्भावना नहीं रहती। द्रव्यनिबन्धन के प्रसंग में कहा गया है कि जो द्रव्य जिन द्रव्यों का आश्रय लेकर परिणमता है, अथवा जिस द्रव्य का स्वभाव द्रव्यान्तर से सम्बद्ध होता है, उसे द्रव्यनिबन्धन जानना चाहिए। ग्राम-नगरादि को क्षेत्रमिबन्धन कहा गया है, क्योंकि प्रतिनियत क्षेत्र में उनका सम्बन्ध पाया जाता है। जो अर्थ जिस काल में प्रतिबद्ध है, उसे कालनिबन्धन कहा जाता है। जैसे आम की बौर चैत्र मास से निबद्ध है; इत्यादि । ___ जो द्रव्य भाव का आधार होता है उसे भावनिबन्धन कहते हैं। जैसे--लोभ का निबन्धन चांदी-सोना आदि, क्योंकि उनके आश्रय से ही उसकी उत्पत्ति देखी जाती है, अथवा उत्पन्न हुए भी लोभ का वह आलम्बन देखा जाता है। इसी प्रकार क्रोध की उत्पत्ति के निमित्तभूत द्रव्य को अथवा उत्पन्न हुए क्रोध के आलम्बनभूत द्रव्य को भावनिबन्धन जानना चाहिए। उपर्युक्त छह प्रकार के निबन्धन में नाम और स्थापना इन दो निबन्धनों को छोड़कर शेष चार को यहाँ अधिकृत कहा गया है। आगे स्पष्ट किया गया है कि यद्यपि यह निबन्धन अनुयोग छह द्रव्यों के निबन्धनों की प्ररूपणा करता है, फिर भी यहाँ अध्यात्मविद्या का अधि १. भूदबलिभडारएण जेणेदं सुत्तं देसामासियभावेण लिहिदं तेणेदेण सुत्तेण सूचिदसेस-अट्ठारस अणियोगद्दाराणं किं चि संखेवेण परूवणं कस्सामो। (धवला, पु० १५, पृ० १) षट्समागम पर टीकाएँ । ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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