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________________ (४) अधर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य को स्पर्श करता है, क्योंकि असंग्राही नैगमनय की अपेक्षा द्रव्यरूपता को प्राप्त अधर्मद्रव्य के स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणुओं के एकता देखी जाती है । (५) कालद्रव्य कालद्रव्य का स्पर्श करता है, क्योंकि एक क्षेत्र में स्थित मोतियों के समान समवाय से रहित होकर अवस्थित लोकाकाश प्रमाण काल-परमाणुओं में कालरूप से एकता देखी जाती है, अथवा एक लोकाकाश में अवस्थान की अपेक्षा भी उनमें एकता देखी जाती है। (६) आकाश द्रव्य आकाश द्रव्य से स्पर्श करता है, क्योंकि नैगमनय की अपेक्षा द्रव्यरूपता को प्राप्त आकाश के स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु का परस्पर में स्पर्श पाया जाता है। इस प्रकार ये ६ एकसंयोगी भंग होते हैं। द्विसंयोगी भंग जैसे-(१) जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य का स्पर्श करता है, क्योंकि जीवद्रव्य की अनन्तानन्त कर्म और नोकर्म पुद्गलस्कन्धों के साथ एकता देखी जाती है । (२) जीव और धर्म द्रव्यों का परस्पर में स्पर्श है, क्योंकि सत्त्व, प्रमेयत्व आदि गुणों से लोक मात्र में अवस्थित उन दोनों में एकता देखी जाती है । इसी प्रकार अधर्म आदि द्रव्यों के साथ स्पर्श रहने से १५ द्विसंयोगी भंग होते हैं। धवला में अन्य भंगों का भी उल्लेख है । इस प्रकार समस्त भंग ६३ (एकसंयोगी ६+ द्विसंयोगी १५+त्रिसंयोगी २०+ चतुःसंयोगी १५+पंचसंयोगी ६+षसंयोगी १) होते हैं। सर्वस्पर्श के स्वरूप का निर्देश करते हुए सूत्र में कहा गया है कि जो द्रव्य परमाणुद्रव्य के समान सर्वात्मस्वरूप से अन्य द्रव्य का स्पर्श करता है, इसका नाम सर्वस्पर्श है।। (सूत्र ५,३,२२) इस सूत्र का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए धवला में कहा गया है कि जिस प्रकार परमाणु द्रव्य सब (सर्वात्मस्वरूप से) अन्य परमाणु का स्पर्श करता है उसी प्रकार का अन्य भी जो स्पर्श होता है उसे सर्वस्पर्श कहा जाता है। __यहां शंकाकार ने, एक परमाणु दूसरे परमाणु में प्रविष्ट होता हुआ क्या एक देश से उसमें प्रविष्ट होता है या सर्वात्मरूप से, इत्यादि विकल्पों को उठाकर अन्य प्रासंगिक ऊहापोह के साथ सूत्रोक्त परमाणु के दृष्टान्त को असंगत ठहराया है। शंकाकार के इस अभिमत का निराकरण करते हुए धवला में, परमाणु क्या सावयव है या निरवयव-इन दो विकल्पों को उठाकर सावयवत्व के निषेधपूर्वक उसे निरवयव सिद्ध किया गया है। आगे वहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि जो संयुक्त व असंयुक्त पुद्गलस्कन्ध परमाणु प्रमाण में उपलब्ध होते हैं उनके अभाव के प्रसंग को टालने के लिए द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा अवयवों से रहित परमाणु के देश स्पर्श को ही सर्वस्पर्श कहा गया है। कारण यह कि अखण्ड परमाणुओं के अवयवों का अभाव होने से उनके सर्वस्पर्श की सम्भावना देखी जाती है। प्रकारान्तर से यहां यह भी कहा है-अथवा दो परमाणुओं के देशस्पर्श होता है, क्योंकि इसके बिना स्थूल स्कन्धों की उत्पत्ति नहीं बनती। सर्वस्पर्श भी उनका होता है, क्योंकि एक परमाणु में दूसरे परमाणु के सर्वात्मना प्रविष्ट होने में कुछ विरोध नहीं है, कारण यह कि कोई परमाणु प्रवेश करनेवाले दूसरे परमाणु के प्रवेश में रुकावट डालता हो, यह तो सम्भव नहीं है, क्योंकि सूक्ष्म का अन्य सूक्ष्म या बादर स्कन्ध के द्वारा रोका जाना बनता नहीं है। इस प्रकार से धवलाकार ने शंकाकार द्वारा उद्भावित सूत्रोक्त परमाणु के दृष्टान्त की असंगति का षट्खण्डागम पर टीकाएँ | ५०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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