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________________ षट्खण्डागम : पीठिका ग्रन्थ-नाम और खण्ड-व्यवस्था ___ आचार्य पुष्पदन्त व भूतबलि विरचित प्रस्तुत पसगम का क्या नाम रहा है, इसका संकेत कहीं मूलसूत्रों में दृष्टिगोचर नहीं होता। आचार्य वीरसेन ने अपनी महत्त्वपूर्ण धवला टीका में उसे खण्ड-सिद्धान्त कहकर उसके छह खण्डों में प्रथम खण्ड का उल्लेख 'जीवट्ठाण' (जीवस्थान) के नाम से किया है। पर वे छह खण्ड कौन-से हैं, इसकी सूचना वहां उन्होंने कहीं नहीं की है।' यहीं पर आगे चलकर पुनः यह कहा गया है कि आचार्य भूतबलि ने धरसेनाचार्य भट्टारक के द्वारा समस्त महाकर्मप्रकृतिप्राभूत का उपसंहार कर श्रुत-नदी प्रवाह के विच्छेद के भय से उसके छह खण्ड किये। वे छह खण्ड कौन हैं, इसका कुछ संकेत उन्होंने यहां भी नहीं किया है। ‘खण्डसिद्धान्त' कहने का अभिप्राय उनका यह दिखता है कि जीवस्थानादि छह खण्डों में विभक्त प्रस्तुत ग्रन्थ पूर्ण ग्रन्थ तो नहीं है, वह 'महाकर्मप्रकृतिप्राभृत' के उपसंहार स्वरूप उसका कुछ ही अंश है । इस परिस्थिति में उसे खण्डसिद्धान्त ही कहा जा सकता है। इस 'खण्डसिद्धान्त' का उल्लेख उन्होंने तीन स्थानों पर किया है—प्रथम 'जीवस्थान' के प्रसंग में, दूसरा शंका के रूप में 'वेदना'खण्ड में, और तीसरा 'वर्गणा'खण्ड में ।। __ यहां यह भी स्मरणीय है कि प्रस्तुत षटखण्डागम में उक्त महाकर्मप्रकृतिप्राभूत के २४ अनुयोगद्वारों में केवल कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म, प्रकृति और बन्धन इन प्रारम्भ के छह अनु १. णामं जीवट्ठाणमिदि ।-धवला, पु० १, पृ० ६० । इदं पुण 'जीवट्ठाणं' खंडसिद्धतं पडु च पुव्वाणुपुवीए द्विदं छण्हं खंडाणं पढमखंडं जीव ट्ठाणमिदि।-धवला पु० १, पृ० ७४ २. .."तेण वि गिरिणयर-चंदगुहाए भूतबलि-पुप्फदंताणं महाकम्मपयडिपाहुई सयलं समप्पिदं । तदो भूतबलिभडारएण सुद-णईपवाह-वोच्छेदभीएण भवियलोगाणुग्गहट्ट महाकम्मपयडिपाहुडमुवसंहरिऊण छखंडाणि कयाणि । -धवला पु० ६, पृ० १३३ ३. धवला पु० १, पृ० ६० एवं ७४ ४. कदि-पास-कम्म-पयाडिअणियोगद्दाराणि वि एत्थ परूविदाणि, तेसिं खंडग्गंथसण्णमका ऊण तिण्णि चेव खंडाणि त्ति किमहं उच्चदे ? ण, तेसिं पहाणाभावादो।-धवला पु० ६, पृ० १०५-६ ५. एदं खंडगंथमज्झप्पविसयं पडुच्च कम्मफासेण पयदमिदि भणिदं । महाकम्मपयडिपाहडे पुण दव्वफासेण सव्वफासेण कम्मफासेण पयदमिदि । -धवला पु० १३, पृ० ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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