SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ মাকসকুনি भावकरणकृति के स्वरूप का उल्लेख कर सूत्रकार ने कहा है कि कृतिप्राभूत का ज्ञाता होकर जो तद्विषयक उपयोग से सहित होता है उसका नाम भावकरणकृति है। आगे उन्होंने इन सब कतियों में यहां किसका अधिकार है, इसे स्पष्ट करते हुए कहा है यहाँ गणनकृति अधिकार प्राप्त है (सूत्र ७४-७६)। गणनकृति की प्ररूपणा की आवश्यकता का संकेत कर धवला में कहा गया है कि गणना के बिना चूंकि शेष अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा घटित नहीं होती है, इसलिए यहां उसकी प्ररूपणा की जा रही है (पृ० ४५२) । यह स्मरणीय है कि सूत्रकार ने यहाँ गणनकृति को प्रसगप्राप्त कह उसकी कुछ भी प्ररूपणा नहीं की। जैसाकि पूर्व में कहा जा चुका है, धवलाकार ने पूर्वोक्त गणनकति के निर्देशक सत्र (६६) को देशामर्शक बतलाकर उसके आश्रय से स्वयं ही विस्तारपूर्वक प्रकृत गणनकति की प्ररूपणा की है (पु० ६, पृ० २७४-३२१)। यह 'कृति' अनुयोगद्वार मूलग्रन्थ के रूप में अतिशय संक्षिप्त है, उसमें केवल ७६ सूत्र ही हैं। उनमें भी प्रारम्भ के ४४ सूत्र मंगलपरक हैं, शेष ३२ सूत्र ही 'कृति' से सम्बद्ध हैं। उसका विस्तार धवलाकार आ० वीरसेन ने अपनी सैद्धान्तिक कुशलता के बल पर किया है। २. वेदना अनुयोगद्वार ___ यह 'वेदना' नामक चतुर्थ खण्ड का दूसरा अनुयोगद्वार है। अवान्तर १६ अनुयोगद्वारों के आधार पर इसका विस्तार अधिक हुआ है । इसी विस्तार के कारण षट्खण्डागम का चौथा खण्ड 'वेदना' के नाम प्रसिद्ध हुआ है। इसमें १६ अनुयोगद्वार हैं, जिनका उल्लेख पीछे 'मूलग्रन्थगत-विषयपरिचय' में किया जा चुका है। उनमें प्रथम 'वेदना निक्षेप' अनुयोगद्वार है। (१) वेदनानिक्षेप-यहां सूत्रकार ने वेदना के इन चार भेदों का उल्लेख किया है-- नामवेदना, स्थापनावेदना, द्रव्यवेदना और भाववेदना (सूत्र ४,२,१,२-३)। धवला में वेदनानिक्षेप के अन्य अवान्तर भेदों का भी उल्लेख है । उनमें नोआगमद्रव्यवेदना के ज्ञायकशरीर आदि तीन भेदों में तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यवेदना के ये दो भेद बतलाये गये हैं-कर्मद्रव्यवेदना और नोकर्मद्रव्यवेदना । इनमें कर्मद्रव्यवेदना ज्ञानावरणीय आदि के भेद से आठ प्रकार की तथा नोकर्मद्रव्यवेदना सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से तीन प्रकार की है। इनमें सिद्ध जीवद्रव्य को सचित्त द्रव्यवेदना और पुद्गल, काल, आकाश, धर्म व अधर्म द्रव्यवेदना को अचित्तद्रव्यवेदना कहा गया है। मिश्रद्रव्यवेदना संसारी जीवद्रव्य है, क्योंकि जीव में जो कर्म और नोकर्म का समवाय है. वह जीव और अजीव से भिन्न जात्यन्तर (मिश्र) के रूप में उपलब्ध होता है। भाववेदना की दूसरी भेदभूत नोआगमभाववेदना जीवभाववेदना और अजीवभाववेदना के भेद से दो प्रकार की है। इनमें जीवभाववेदना औदयिक आदि के भेद से पांच प्रकार की है। उनमें आठ कर्मों के उदय से उत्पन्न वेदना को औदयिक वेदना, उन्हीं के उपशम से उत्पन्न वेदना को औपशमिक वेदना और उनके क्षय से उत्पन्न वेदना को क्षायिक वेदना कहा गया है । उन्हीं के क्षयोपशम से जो अवधिज्ञानादिरूप वेदना होती है उसका नाम क्षायोपशमिक वेदमा है। पदसण्डागम पर टीकाएँ / ४७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy