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अपर्याप्त सामान्य भोघ मालाप'
(१) गुणस्थान-मिथ्यात्व, सासादन, असंयतस०, प्रमत्तसं०, सयोगकेवली (२) जीवसमास-७ बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त आदि । (३) पर्याप्ति-सं०५० अपर्याप्त ६, असंज्ञी पंचेन्द्रिय आदि द्वीन्द्रिय पर्यन्त अपर्याप्त ५,
एकेन्द्रिय अप०४ (४) प्राण-संज्ञी पं० ७, असंझी पं०७, चतुरिन्द्रिय ६, त्री० ५, द्वी० ४, एकेन्द्रिय ३ (५) संज्ञा-चारों, अतीतसंज्ञा भी। (६) गति-चारों गतियाँ (७) इन्द्रिय-एकेन्द्रियादि ५ (८) काय-पृथिवी कायिकादि छहों (९) योग -४ औ मिश्र, वै०मिश्र, आ०मिश्र व कार्मण (१०) वेद-तीनों, अपगत वेद भी (११) कषाय-क्रोधादि चारों, अकषाय भी (१२) ज्ञान-६ मनःपर्यय व विभंग के बिना (१३) संयम-४ सामायिक, छेदो०, यथाख्यात व असंयम (१४) दर्शन-चक्षुदर्शनादि ४ (१५) लेश्या-द्रव्यलेश्या कापोत व शुक्ल, भावलेश्या छहों (१६) भव्य-भवसिद्धिक व अभवसिद्धिक (१७) सम्यक्त्व-सम्यग्मिथ्यात्व के बिना पांच (१८) संज्ञी-संजी, असंजी, अनुभय (१६) आहार-आहारी व अनाहारी (२०) उपयोग-साकार, अनाकार, युगपत् साकार-अनाकार
इसी पद्धति से आगे मिथ्यादृष्टि व सासादन सम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानों में ओघ आलापों और तत्पश्चात् आदेश की अपेक्षा अवान्तर भेदों के साथ गति-इन्द्रियादि चौदह मार्गणाओं में आलापों का पृथक्-पृथक् विचार किया गया है।
इस विस्तृत आलापाधिकार को षटखण्डागम की सोलह जिल्दों में से दूसरी जिल्द में प्रकाशित किया गया है। यह भी स्मरणीय है कि जिस प्रकार ऊपर दो तालिकाओं द्वारा पर्याप्त व अपर्याप्त सम्बन्धी ओघ आलापों को स्पष्ट किया गया है उसी प्रकार दूसरी जिल्द में सभी आलापों को विविध तालिकाओं द्वारा हिन्दी अनुवाद में स्पष्ट किया गया है। ऐसी सब तालिकायें वहाँ ५४५ हैं। २. द्रव्यप्रमाणानुगम
द्रव्य-प्रमाणानुगम का स्पष्टीकरण-जीवस्थानगत पूर्वोक्त आठ अनुयोगद्वारों में यह दूसरा अनुयोगद्वार है। यह 'द्रव्यप्रमाणानुगम' पद द्रव्य, प्रमाण. और अनुगम इन तीन शब्दों के योग से निष्पन्न हुआ है। उसकी सार्थकता को प्रकट करते हुए धवलाकार ने क्रम से उन तीनों शब्दों की व्याख्या की है। 'द्रव्य' शब्द के निरुक्तार्थ को प्रकट करते हुए धवला में
१. धवला पु० २, पृ० ४२२-२३ ३८८ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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