SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थी उसे सम्मत्यर्थ सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री के पास भेजी थी। पण्डित जी ने उसे उत्तम बताकर कुछ सुझावों के साथ अपनी सम्मति देते हुए इस कार्य के लिए मुझे प्रोत्साहित किया है। इस ग्रन्थ के लिए उनके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हैं। विद्यावारिधि डॉ० ज्योतिप्रसाद जी से मैंने इसके विषय में अंग्रेजी में अपना वक्तव्य लिख देने का अनुरोध किया था, जिसे स्वीकार कर उन्होंने उसे 'प्रधान सम्पादकीय' के रूप में दे दिया है। इस अनुग्रह के लिए मैं उनका विशेष आभार मानता हूँ। पं० गोपीलाल जी 'अमर' ने ग्रन्थ के सम्पादन प्रकाशन से सम्बन्धित कुछ सुझाव दिये थे। इसके लिए मैं उन्हें साधुवाद देता हूँ । मेरी कनिष्ठ पुत्रवधू सौ० अंजना एम०ए० ग्रन्थ की पाण्डुलिपि आदि के करने में सहायता करती रही है इसके लिए मैं उसके भावी उज्ज्वल उत्कर्ष की ही अपेक्षा करता है। भारतीय ज्ञानपीठ के अध्यक्ष श्रीमान् साहू श्रेयांसप्रसाद जी और मैंनेजिंग ट्रस्टी श्रीमान् साहू अशोककुमार जी ने बहुव्ययसाध्य प्रस्तुत ग्रन्थ को ज्ञानपीठ के अन्तर्गत 'मतिदेवी जैन ग्रन्थमाला' के प्रकाशन कार्यक्रम में स्वीकार कर उसे प्रकाशित करा दिया है। इस अनुग्रह के लिए मैं उनका अतिशय कृतज्ञ हूँ। इसमें पूरा सहकार ज्ञानपीठ के भूतपूर्व निदेशक व वर्तमान में सलाहकार बाबू लक्ष्मीचन्द्र जी जैन तथा वर्तमान निदेशक श्री बिशन टंडन जी का रहा है । इसके लिए मैं आप दोनों महानुभावों का हृदय से आभार मानता हूँ। स्व० साहू शान्ति प्रसाद जी और उनकी सुयोग्य पत्नी धर्मवत्सला स्व. रमारानी द्वारा देश-विदेश में प्रतिष्ठाप्राप्त 'भारतीय ज्ञानपीठ' जैसी जिस लोकोपकारक संस्था को स्थापित किया गया है उसके द्वारा चालू अपूर्व कार्य, विशेषकर साहित्यिक, चिरस्मरणीय रहने वाला है । उत्तम साहित्यस्रजेताओं को तो उससे पर्याप्त प्रोत्साहन मिला है। ___डॉ० गुलाबचन्द्र जी ने प्रस्तुत प्रकाशन को सुरुचिपूर्ण एवं सुन्दर बनाने के लिए जो तन्मय होकर उसके मुद्रण आदि का कार्य कराया है वह सराहनीय है। मैं इसके लिए उन्हें अतिशय धन्यवाद देता हूँ। ___ इस प्रकार उपर्युक्त सभी महानुभावों की सद्भावना और सहयोग से ही यह गुरुतर कार्य सम्पन्न हुआ है, जिसे सम्पन्न होता हुआ देख मैं अतिशय प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। हैदराबाद दीपावली-वीरनिर्वाण सं० २५१३ २ नवम्बर १६८६ -बालचन्द्र शास्त्री १८ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy