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धवला में अधिकार के ये तीन भेद निर्दिष्ट किये गये हैं-प्रमाण, प्रमेय और तदुभय । ' परन्तु अनुयोगद्वार में उसके भेदों को न दिखाकर 'अर्थाधिकार क्या है' इस प्रश्न के उत्तर में यह कह दिया गया कि 'जो जिस अध्ययन का अर्थाधिकार है'। आगे 'तं जहा' इस निर्देश के साथ वहाँ यह गाथा उपस्थित की गई है"
सावज्जजोगविरती उक्कित्तण गुणवओ य पडिवत्ती । खलियस्स दिणा वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ॥
६. धवला मे नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेप भेदों का निर्देश करते हुए उन्हें 'जीवस्थान' के साथ योजित किया गया है। 3
अनुयोगद्वार में 'निक्षेप' अनुयोगद्वार के प्रसंग में सर्वप्रथम उसके इन तीन भेदों का निर्देश इस प्रकार है - प्रोघनिष्पन्न, नाम निष्पन्न और सूत्रालापकनिष्पन्न | तत्पश्चात् ओघनिष्पन्न के अध्ययन, अक्षीण, आय और क्षपणा इन चार भेदों का निर्देश करते हुए उनमें अध्ययन को नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के भेद से चार प्रकार का कहा है । आगे उनका स्पष्टीकरण किया गया है।
इस प्रकार दोनों ग्रन्थों में प्रसंग के अनुसार कुछ विशेषता के होने पर भी नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन निक्षेप भेदों की अपेक्षा समानता रही है । १०. धवला में जीवस्थानविषयक अवतार के जिन उपक्रम आदि चार भेदों का निर्देश किया गया है उनमें चौथा भेद नय रहा है । उसके विषय में विचार करते हुए धवला में प्रथमतः उसके द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दो भेदों का निर्देश किया गया है । पश्चात् द्रव्यार्थिक को नैगम, संग्रह और व्यवहार के भेद से तीन प्रकार का तथा पर्यायार्थिक को अर्थनय और व्यंजन-नय के भेद से दो प्रकार का कहा गया है। आगे उनके विषय में कुछ और स्पष्ट करते हुए अर्थनय के नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र ये चार भेद तथा व्यंजननय के शब्द, समभिरूढ और एवम्भूत ये तीन भेद बतलाये हैं ।
अनुयोगद्वार में 'सामायिक' अध्ययन के विषय में जिन चार अनुयोगद्वारों का निर्देश है उनमें अन्तिम नय-अनुयोगद्वार है । उसके विषय में विचार करते हुए वहाँ ये सात मूलनय कहे गये हैं—नगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवम्भूत
इस प्रकार दोनों ग्रन्थों में उन सात नयों का उल्लेख समान रूप में ही किया गया है ।
१. धवला, पु० १, पृ० ८२ । इनमें से 'जीवस्थान' में प्रमेय प्ररूपणा के आश्रय से एक ही अर्थाधिकार कहा गया है । पर आगे उसी उपक्रमादि चार प्रकार के अवतार की प्ररूपणा के प्रसंग में पूर्वोक्त 'तिविहाय प्राणुपुव्वी' आदि गाथागत ' विविहो' पाठान्तर के अनुसार अधिकार को अनेक प्रकार का निर्दिष्ट किया गया है । (पु० पृ० १४०) २. अनुयोगद्वार सूत्र ५२६ ( यह गाथा इसके पूर्व आवश्यक के अर्थाधिकार के प्रसंग में भी आ चुकी है -- सूत्र ७३, गाथा ६)
३. धवला, पु० १, पृ० ८३
४. अनुयोगद्वार, सूत्र ५३४-४६
५. धवला, पु० १, पृ० ८३ ६१ द्रष्टव्य हैं ।
६. अनुयोगद्वार, सूत्र ६०६ व गाथा १३६-३६
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षट्खण्डागम की अन्य प्रथों से तुलना / २७३
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