________________
प्रकार उत्पन्न होते हैं, इसे संक्षेप में स्पष्ट करते हुए कहा है कि स्कन्ध तो भद, संघात और भेद संघात से उत्पन्न होते हैं, किन्तु परमाणु केवल भेद से उत्पन्न होते हैं (५,२६-२८ ) ।
० ख० में यह स्कन्ध और अणुरूप पुद्गलों की उत्पत्ति की प्ररूपणा बहुत विस्तार से की गई है । उसमें पाँचवें वर्गणा खण्ड के अन्तर्गत बन्धन अनुयोगद्वार में बन्धनीय (वर्गणाओं) की प्ररूपणा १६ अनुयोगद्वारों के प्राश्रय से की गई है। उनमें 'वर्गणानिरूपणा' नामक चौथे अनुयोगद्वार में एक द्विप्रदेशी आदि वर्णणाएँ क्या भेद से उत्पन्न होती हैं, क्या संघात से उत्पन्न होती हैं और क्या भेद-संघात से उत्पन्न होती हैं; इसका विचार विस्तार से किया गया है ।'
दोनों ग्रन्थों में संक्षेप और विस्तार से की गई प्ररूपणा में यथासम्भव कुछ समानता रही ही है । यथा-
तत्त्वार्थसूत्र में अणु की उत्पत्ति भेद से प्रकट की गई है (५-२७ ) ।
० ख० में भी परमाणुस्वरूप एकप्रदेशिक परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणा की उत्पत्ति तत्त्वार्थसूत्र के समान भेद से ही प्रकट की गई है।
तत्वार्थ सूत्र में द्वि-प्रदेशी आदि स्कन्धों की उत्पत्ति भेद, संघात और भेद-संघात से निर्दिष्ट की गई है (५-२६) ।
ष० ख० में भी आगे स्कन्धस्वरूप द्वि-त्रिप्रदेशी आदि वर्गणाओं की उत्पत्ति यथासम्भव भेद, संघात और भेद-संघात से निर्दिष्ट की गई है 13
२१. तत्त्वार्थसूत्र में परमाणुओं के परस्पर में होनेवाले एकात्मकतारूप बन्ध का विचार करते हुए कहा गया है कि परमाणुओं का जो परस्पर में बन्ध होता है वह स्निग्ध और रूक्ष गुणनिमित्त से होता है । इसे विशेष रूप में स्पष्ट करते हुए वहाँ आगे यह स्पष्ट कर दिया गया है कि स्निग्ध और रूक्ष गुण के आश्रय से होनेवाला वह बन्ध जघन्य गुणवाले परमाणुओ का अन्य किन्हीं भी परमाणुओं के साथ नहीं होता है । गुण से अभिप्राय यहाँ स्निग्धता और रूक्षता के प्रविभागप्रतिच्छेदरूप अंशों का रहा है। तदनुसार जिन परमाणुओं में स्निग्धता व रूक्षता का जघन्य - सबसे निकृष्ट - अंश रहता है, अन्य परमाणुओं के साथ उनके बन्ध का प्रतिषेध किया गया है। आगे चलकर उन गुणों की समानता में समानजातीय परमाणुओं के भी बन्ध का निषेध किया गया है। उदाहरण के रूप में दो गुण स्निग्धवाले परमाणुओं का दो गुण रूक्षवाले परमाणुओं के साथ, तीन गुण स्निग्धवाले परमाणुओं का तीन गुण रूक्षवाले परमाणुओं के साथ, दो गुण स्निग्धवाले परमाणुओं का अन्य दो गुण स्निग्धवाले तथा दो गुण रूक्षवाले परमाणुओं का अन्य दो गुण रूक्षवाले परमाणुओं के साथ बन्ध नहीं होता है ।
तब फिर कितने स्निग्ध व रूक्ष गुणवाले परमाणुत्रों में परस्पर बन्ध होता है, इसे स्पष्ट करते हुए आगे कहा गया है कि वह बन्ध दो-दो गुणों से अधिक परमाणुओं में हुआ करता है । जैसे -- दो गुण स्निग्ध परमाणु का चार गुण स्निग्ध परमाणु के साथ बन्ध होता है, किन्तु
१. ष० ख० सूत्र ५, ६, ६८-११६ (५० १४, पृ० १२० - ३३ )
२. वग्गणनिरूवणदाए इमा एयपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणाणाम किं भेदेण किं संघादेण किं भेद-संघादेण ? उवरिल्लीणं दव्वाणं भेदेण । सूत्र ६८-६६ ( पु० १४, पृ० १२० ) । ३. प० ख० सूत्र ५,६,१०० ११६
Jain Education International
षट्खण्डागम की अन्य ग्रन्थों से तुलना / १७५
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org