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को भी प्रकट किया है । '
तत्त्वार्थ सूत्र के भाष्यभूत तत्त्वार्थवार्तिक में उपर्युक्त तीन प्रकार के ऋजुमतिमन:पर्ययज्ञानावरणीय के द्वारा प्राब्रियमाण तीन प्रकार के ऋजुमतिमन:पर्ययज्ञान को और छह प्रकार के विपुलमतिमन:पर्ययज्ञानावरणीय के द्वारा आव्रियमाण छह प्रकार के विपुलमतिमन:पर्ययज्ञान को स्पष्ट किया है । साथ ही वहाँ इन दोनों मन:पर्ययज्ञानों के विषयभेद को भी प्रकट किया है । "
८. तत्त्वार्थसूत्र में पूर्वोक्त क्रम से उन मति आदि पाँच सम्यग्ज्ञानों का निर्देश करके आगे मति, श्रुत और अवधि ये तीन ज्ञान विपर्यय भी होते हैं, यह स्पष्ट कर दिया गया है । 3 षट्खण्डागम में इन तीन मिथ्याज्ञानों का उल्लेख पूर्वोक्त पाँच सम्यग्ज्ञानों के साथ ही किया गया है । *
यह तत्त्वार्थ सूत्र में जहाँ 'ज्ञान' शब्द व्यवहृत हुआ है वहीं षट्खण्डागम में 'ज्ञानी' शब्द IT व्यवहार हुआ है । इस विषय में धवलाकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पर्याय और पर्यायी में कथंचित् अभेद होने से पर्यायी (ज्ञानी) का ग्रहण करने पर भी पर्यायस्वरूप ज्ञान का ही ग्रहण होता है । "
६. तत्त्वार्थसूत्र में जीवादि तत्त्वों के अधिगम के कारणभूत प्रमाण और नय में प्रथमतः प्रत्यक्ष-परोक्ष स्वरूप प्रमाण का विचार करके तत्पश्चात् नय का निरूपण करते हुए उसके ये सात भेद निर्दिष्ट किये गये हैं—नगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत (१-३३) ।
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, ष० ख० में प्रतिपाद्य विषय के विवेचन के पूर्व उसके विषय में प्रायः सर्वत्र नामादि निक्षेपों के साथ नयों की योजना की गई है । यद्यपि वहाँ तत्त्वार्थ सूत्र के समान नामनिर्देशपूर्वक नयों की संख्या का उल्लेख नहीं किया गया है, फिर भी वहाँ नैगम, व्यवहार, संग्रह, ऋजुस्त्र और शब्द इन पाँच नयों का ही प्रचुरता से उपयोग किया गया है ।
शब्दय के भेद भूत समभिरूढ और एवंभूत इन दो नयों का उल्लेख षट्खण्डागम में
१. ष० ख० सूत्र ५, ५, ६२-७८ ( पु० १३, पृ० ३१६-४४ )
२. त० वा० १, २३, ६-१०
३. त० सूत्र १, ६ व ३१-३२
४. ष० ख० पु० १, सूत्र १,११५ ( पृ० ३५३ ), तत्त्वार्थ सूत्र २ - ६ ( स द्विविधोऽष्ट- चतुर्भेदः) द्रष्टव्य है ।
५. अत्रापि पूर्ववत् पर्याय- पर्यायणोः कथंचिदभेदात् पर्यायिग्रहणेऽपि पर्यायस्य ज्ञानस्यैव ग्रहणं भवति । ज्ञानिनां भेदाद् ज्ञानभेदोऽवगम्यते इति वा पर्यायिद्वारेणोपदेशः । धवला पु० १, पृ० ३५३
६. सूत्र ४,१,४६-५० ( पु० ) । ४,२, २, १ - ४ व ४, २, ३, १२ एवं १५, ४, २, ६, २ व ११ और १४, ४,२, १०, २ व ११, २ व ६ और १२, ४,२,१२,२ व ६, ६ और ११ ( पु० ५, ५, ५-८ ( पु०१३) । ५, ६, ३-६ व ७२-७४ ( पु० १४ ) ।
१६६ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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१-४ ( पु० १० ) । ४,२, ८, २ व ३०, ४८, ५६ और ५८ ४,२, १२ ) । ५,३, ५-८
५,४, ५-८,
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