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समाधान -- आगम और अनुमान से जाना जाता है कि दर्शनमोहनीय कर्म सत्त्व को अपेक्षा तीन प्रकार का है । विपरीत अभिनिवेश मूढ़ता और सन्देह ये मिथ्यात्व के चिह्न हैं | आगम और अनागमों में समभाव होना सम्यङ मिथ्यात्व का चिह्न है । आप्त, आगम और पदार्थों की श्रद्धा में शिथिलता और श्रद्धा की हीनता होना सम्यक्त्व प्रकृति का चिह्न है ।
शंका -- अनन्तानुबन्धी कृषायों की शक्ति दो प्रकार की है, इस विषय में क्या युक्ति है ? समाधान - सम्यक्त्व और चारित्र इन दोनों का घात करनेवाले अनन्तानुबन्धी क्रोधादिक दर्शन मोहनीय स्वरूप नहीं माने जा सकते हैं, क्योंकि सम्यक्त्व प्रकृति मिथ्यात्व और सम्य. मिथ्यात्व के द्वारा ही आवरण किये जानेवाले सम्यग्दर्शन के आवरण करने में फल का अभाव है ।
शंका- पूर्व शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को नहीं ग्रहण करके स्थित जीव का इच्छित गति में गमन किस कर्म से होता है ?
समाधान - आनुपूर्वी नाम कर्म से इच्छित गति में गमन होता है ।
शंका -- विहायोगति नाम कर्म से इच्छित गति में गमन क्यों नहीं होता ? समाधान नहीं, क्योंकि विहायोगति नाम कर्म का औदारिक आदि तीनों शरीरों के उदय के बिना उदय नहीं होता है ।
शंका-आकार विशेष को बनाये रखने में व्यापार करनेवाली आनुपूर्वी इच्छित गति में
गमन का कारण कैसे होती है ?
- क्योंकि आनुपूर्वी का दोनों ही कार्यों के व्यापार में विरोध का अभाव है अर्थात् विग्रहगति में आकार विशेष को बनाये रखने में और इच्छितगति में गमन कराना ये दोनों ही नामकर्म के कार्य हैं।
शंका-अगुरुलघुत्व तो जीव का स्वाभाविक गुण है उसे यह कर्मप्रकृतियों में क्यों
गिनाया ?
समाधान-क्योंकि संसार अवस्था में कर्मपरतन्त्र जीव में उस स्वाभाविक अगुरुलघुत्व गुण का अभाव है ।
शंका--अगुरुलघुत्व नाम का गुण सब जीवों के पारिणामिक है, क्योंकि सब कर्मों से रहित सिद्धों में भी उसका सद्भाव पाया जाता है। इसलिए अगुरुलघुत्व नामकर्म का कोई फल न होने से उसका अभाव मानना चाहिए ।
समाधान
समाधान- उपर्युक्त दोप प्राप्त होता यदि अगुरुलघुत्व नामकर्म जीवविपाकी होता । किन्तु यह कर्म पुद्गलविपाकी है। क्योंकि गुरुस्पर्शवाली अनन्तानन्त पुद्गल वर्गणाओं के द्वारा आरब्ध शरीर के अगुरुलघुत्व की उत्पत्ति होती है । यदि ऐसा न माना जाये तो गुरुभारवाले शरीर से संयुक्त यह जीव उठने के लिए भी नहीं समर्थ होता, जबकि ऐसा नहीं है ।
शंका-संक्लेश नाम किसका है ?
समाधान - अमाता के बन्धयोग्य परिणाम को संक्लेश कहते हैं ।
शंका- विशुद्धि नाम किसका है ?
समाधान -- साता के बन्धयोग्य परिणाम को विशुद्धि कहते हैं ।
१४ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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