SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैगम और व्यवहार इन दो नयों की अपेक्षा ज्ञानावरणीय आदि आठों कर्मवेदनाएँ कंथचित् एक जीव के, कथंचित् नो-जीव के, कथंचित् अनेक जीवों के, कथंचित् अनेक नो-जीवों के, कथंचित् एक जीव व एक नो-जीव के, कथंचित् एक जीव व अनेक नो-जीवों के, कथंचित् अनेक जीव व एक नो-जीव के, और कथंचित् अनेक जीवों व अनेक नो-जीवों के होती हैं (९-१०)। वह वेदना संग्रहनय की अपेक्षा जीव के अथवा जीवों के होती है (११-१३) । शब्द और ऋजुसूत्र इन दो नयों की अपेक्षा वह कर्मवेदना जीव के होती है (१४-१५)। कारण यह कि इन दोनों नयों की दृष्टि में बहुत्व सम्भव नहीं है। इस प्रकार यह अनयोगद्वार १५ सत्रों में समाप्त हुआ है। १०. वेदनावेदनाविधान-'वेदनावेदनाविधान' में प्रथम 'वेदना' शब्द का अर्थ 'वेद्यते वैदिष्यते इति वेदना' इस निरुक्ति के अनुसार वह आठ प्रकार का कर्मपुद्गलस्कन्ध है, जिसका वर्तमान में वेदन किया जाता है व भविष्य में वेदन किया जाएगा। दूसरे 'वेदना'. शब्द का अर्थ अनुभवन है । 'विधान' शब्द का अर्थ प्ररूपणा है । इस प्रकार इस अनुयोगद्वार में बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त कर्मवेदनाओं की प्ररूपणा नैगमादि नयों के आश्रय से की गई है। यथा यहाँ प्रथम सूत्र में प्रस्तुत अनुयोगद्वार का स्मरण कराते हुए आगे कहा गया है कि बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त-इस तीन प्रकार के कर्म का नाम नैगम नय की अपेक्षा प्रकृति है, ऐसा मानकर यहां उस सबकी प्ररुपणा की जा रही है (१-२)। ___अभिप्राय यह है कि नैगमनय बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त इन तीनों कर्मों के 'वेदना' नाम को स्वीकार करता है । तदनुसार आगे यहाँ उस नंगम नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय वेदना के आश्रय से इन बध्यमानादि तीनों की प्ररुपणा एक-एक रूप में और द्विसंयोगी-त्रिसंयोगी भंगों के रूप में भी की गई है। ज्ञानावरणीय वेदना कथंचित् बध्यमान वेदना है । कथंचित् उदीर्ण वेदना है। कथंचित् उपशान्त वेदना है । कथंचित् बध्यमान व उदीर्ण वेदना (द्विसंयोगी भंग) है (३-६)। __ इसी प्रकार से आगे एकवचन, द्विवचन और बहुवचन के संयोग से द्विसंयोगी व त्रिसंयोगी भंगों के रूप में उस ज्ञानावरणीय वेदना की प्ररूपणा की गई है (१०-२८)। आगे यह सूचना कर दी गई है कि जिस प्रकार नैगमनय के अभिप्रायानुसार ज्ञानावरणीय के वेदनावेदनविधान की प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार दर्शनावरणीय आदि अन्य सातों कर्मों के वेदनावेदनविधान की प्ररूपणा इस नयके आश्रय से करना चाहिए, उसमें कुछ विशेषता नहीं है (२६)। ___ व्यवहार नयके आश्रय से ज्ञानावरणीय व उसी के समान अन्य सातों कर्मों की वेदना कथंचित् बध्यमान वेदना, कथंचित् उदीर्ण वेदना व कथंचित् उपशान्त वेदना है। कथंचित् उदीर्ण वेदनाएँ व उपशान्त वेदनाएँ हैं । इसी प्रकार आगे भी इस नय की अपेक्षा उस वेदना की प्ररूपणा की गई है (३०-४७)। यहाँ सूत्र (३३) में बध्यमान वेदना का बहुवचन के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है। उसके स्पष्टीकरण में धवलाकार ने कहा है कि व्यवहार नय की दृष्टि में बध्यमान वेदना का बहुत्व सम्भव नहीं है । कारण यह है कि बन्धक जीवों के बहुत होने से तो बध्यमान वेदना का बहुत्व सम्भव नहीं है, क्योंकि जीवों के भेद से बध्यमान वेदना में भेद का व्यवहार नहीं होता। मूलप्रन्थगत विषय का परिचय | १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy