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और मनुष्यणी ये जीवराशियां भी निरन्तर हैं, उनका कभी अभाव नहीं होता। मनुष्य अपर्याप्तों का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्रकाल तक होता है (५-१०)।
देवगति में सामान्य देवों का और उन्हीं के समान भवनवासियों से लेकर सर्वार्थसिद्धि विमानवासी तक किन्हीं देवविशेषों का भी अन्तर नहीं होता, वे सब ही निरन्तर हैं (११-१४)।
इसी पद्धति से आगे इन्द्रिय व काय आदि अन्य मार्गणाओं में भी यथाक्रम से उस अन्तर की प्ररूपणा की गई है। यहाँ सब सूत्र ६८ हैं ।
यहाँ यह विशेष ज्ञातव्य है कि पीछे 'नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय' अनुयोगद्वार में जिन आठ सान्तर मार्गणाओं का निर्देश किया गया है उनमें जहाँ जितना अन्तर सम्भव है उसके प्रमाण को यहाँ प्रकट किया गया है। जैसे---
१. मनुष्य अपर्याप्तों का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र काल तक होता है (सूत्र ८-१०)।
२. वैक्रियिक मिश्रकाययोगियों का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से बारह मुहूर्त तक होता है (२४-२६)।
३-४. आहारककाययोगियों और आहारकमिश्रकाययोगियों का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से वर्षपृथक्त्व काल तक होता है (२७-२६) ।
५. सूक्ष्मसाम्परायिक शुद्धिसंयतों का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से छह मास तक होता है (४२-४४ ।
६. उपशमसम्यग्दृष्टियों का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से सात रात-दिन होता है (५७-५६)।
७-८. सासादनसम्यग्दृष्टियों और सम्यग्मिथ्यादृष्टियों का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र काल तक होता है (६०-६२) ।
१०. भागाभागानुगम _ 'भागाभाग' में भाग से अभिप्राय अनन्तवें भाग, असंख्यातवें भाग और संख्यातवें भाग का है तथा अभाग से अभिप्राय अनन्तबहुभाग, असंख्यातबहुभाग और संख्यात बहुभाग का रहा है। तदनुसार इस अनुयोगद्वार में गति-इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओं में वर्तमान नारकी आदि जीवों में विवक्षित जीव अन्य सब जीवों के कितने भाग प्रमाण हैं, इसका यथाक्रम से विचार किया गया है । जैसे
गतिमार्गणा के अनुसार नरकगति में नारकी जीव सब जीवों के कितने वें भाग प्रमाण हैं, इस प्रश्न को उठाते हुए स्पष्ट किया गया है कि वे सब जीवों के अनन्तवें भाग प्रमाण हैं। इसी प्रकार पृथक्-पृथक् सातों पृथिवियों में स्थित नारकी सब जीवों के अनन्तवें भाग प्रमाण ही हैं (१-३)।
तियंचगति में सामान्य से तिर्यंच जीव सब जीवों के अनन्तबहुभाग प्रमाण हैं । वहाँ पंचेन्द्रिय तिर्यंच आदि अन्य चार प्रकार के तिर्यंच तथा मनुष्यगति में मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त,
यूनग्रन्थगत विषय का परिचय | ६६
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