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________________ ३ ६ १२ ६७६ अथ तच्छेषविधि श्लोकद्वयेनाह धर्मामृत (अनगार ) मासं वासोऽन्यदैकत्र योगक्षेत्रं शुचौ व्रजेत् । मार्गेऽतीते त्यजेच्चार्थवशादपि न लङ्घयेत् ॥६८॥ नभश्चतुर्थी तद्याने कृष्णां शुक्लोर्जपञ्चमीम् । यावन्न गच्छेत्तच्छेदे कथंचिच्छेदमाचरेत् ॥६९॥ वासः कर्तव्य इति शेषः । अन्यदा - हेमन्तादिऋतुषु । शुचौ - आषाढे । मार्गे - मार्गशीर्षमासे ॥६८॥ नभो - श्रावणः । तद्याने -योगक्षेत्रगमने । न गच्छेत् — स्थानान्तरे न विहरेत् । तच्छेदे - योगातिक्रमे । कथंचित् - दुर्निवारोपसर्गादिना । छेदं - प्रायश्चित्तम् ॥ ६९ ॥ अथ वीरनिर्वाणक्रिया निर्णयार्थमाह योगान्तेsa सिद्धनिर्वाणगुरुशान्तयः । प्रणुत्या वीरनिर्वाण कृत्यातो नित्यवन्दना ॥७०॥ योगान्ते — वर्षायोगनिष्ठापने कृते सति । अतः - एतत् क्रियानन्तरम् ॥७०॥ से पूर्व दिशा चैत्मालयोंकी वन्दना हो जाती है । फिर दक्षिण दिशामें संभव और अभिनन्दन जिनकी स्तुतियाँ पढ़कर अंचलिका सहित चैत्यभक्ति पढ़ना चाहिये । इसी तरह पश्चिम दिशा सुमतिजिन और पद्मप्रभजिन तथा उत्तर दिशामें सुपार्श्व और चन्द्रप्रभ भगवान् के स्तवन पढ़ना चाहिये । इस प्रकार अपने स्थान पर स्थित रहकर ही चारों दिशामें भाव वन्दना करना चाहिये | उन-उन दिशाओंकी ओर उठने की आवश्यकता नहीं है ||६६-६७ || आगे दो इलोकोंके द्वारा शेष विधि कहते हैं वर्षा योगके सिवाय अन्य हेमन्त आदि ऋतुओं में श्रमणोंको एक स्थान नगर आदि में एक मास तक ही निवास करना चाहिए। तथा मुनि संघको आषाढ़ में वर्षायोग के स्थानको चले जाना चाहिए। और मार्गशीर्ष महीना बीतने पर वर्षायोग के स्थानको छोड़ देना चाहिए | कितना ही प्रयोजन होनेपर भी वर्षायोगके स्थानमें श्रावण कृष्णा चतुर्थी तक अवश्य पहुँचना चाहिए । इस तिथिको नहीं लाँघना चाहिए । तथा कितना ही प्रयोजन होनेपर भी कार्तिक शुक्ला पंचमी तक वर्षायोग के स्थानसे अन्य स्थानको नहीं जाना चाहिए। यदि किसी दुर्निवार उपसर्ग आदिके कारण वर्षायोगके उक्त प्रयोगमें अतिक्रम करना पड़े तो साधु संघको प्रायश्चित्त लेना चाहिए ||६८-६९|| विशेषार्थ - श्वे. दशाश्रुत स्कन्ध निर्युक्तिमें कहा है कि वर्षावास आषाढ़ की पूर्णिमासे प्रारम्भ होकर मार्गशीर्ष मासकी दसमी तिथिको पूर्ण होता है । यदि इसके बाद भी वर्षा होती हो या मार्ग में अत्यधिक कीचड़ हो तो साधु इस कालके बाद भी उसी स्थान पर ठहर सकते हैं ।।६८-६९।। Jain Education International वीरभगवान्के निर्वाणकल्याणकके दिन की जानेवाली क्रियाको बताते हैं कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तिम पहरमें वर्षायोगका निष्ठापन करनेके बाद सूर्यका उदय होनेपर भगवान् महावीर स्वामीकी निर्वाण क्रियामें सिद्धभक्ति, निर्वाणभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शान्तिभक्ति करनी चाहिए। उसके पश्चात् नित्यवन्दना करना चाहिए ॥७०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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