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धर्मामृत ( अनगार) सुप्रापाः स्तनयित्नवः शरदि ते साटोपमुत्थाय ये,
प्रत्याशं प्रसृताश्चलप्रकृतयो गर्जन्त्यमन्दं मुधा। ये प्रागब्दचितान् फद्धिमुदकैोहोन्नयन्तो नवान्
सत्क्षेत्राणि पृणन्त्यालं जनयितुं ते दुर्लभास्तद्धनाः ॥८॥ स्तनयित्नवः-मेघाः, सूक्त्या देशकाश्च । शरदि-घनान्ते दुष्षमायां च, उत्थाय-उत्पद्य उद्धतीभूय ६ च. प्रत्याशं-प्रतिदिशं प्रतिस्पहं च, प्रागब्दचितान्-प्रावृड्मेघपुष्टान् पूर्वाचार्यव्युत्पादितानि च, फद्धि
सस्यसम्पत्ति सदाचरणप्रकर्ष च, उदकैः-पक्षे सम्यगुपदेशः व्रीहीन-धान्यानि प्रागब्दचितानि (-तानिति)
विशेषणाच्छाल्यादिस्तम्बान शास्त्रार्थरहस्यानि च। नवान्-गोधूमादिस्तम्बान् अपूर्वव्युत्पत्तिविशेषांश्च । ९ सत्क्षेत्राणि-पक्षे विनीतविनेयान्, पृणन्ति-पूरयन्ति, तद्घनाः-शरन्मेघाः ऐदंयुगीनगणिनश्च ॥८॥
अथ व्यवहारप्रधानदेशनायाः कर्तारमाशंसन्ति
शरद् ऋतु में ऐसे मेघ सुलभ हैं जो बड़े आडम्बरके साथ उठकर और प्रत्येक दिशामें फैलकर वृथा ही बड़े जोरसे गरजते हैं और देखते देखते विलीन हो जाते हैं। किन्तु जो वर्षाकालके मेघोंसे पुष्ट हुए धान्यको फल सम्पन्न करते तथा नवीन धान्योंको उत्पन्न करनेके लिए खेतोंको जलसे भर देते हैं ऐसे मेघ दुर्लभ हैं ॥८॥
विशेषार्थ-रुद्रट भट्टने समासोक्ति अलंकारका लक्षण इस प्रकार कहा है-'जहाँ समस्त समान विशेषणोंके साथ एक उपमानका ही इस प्रकार कथन किया जाये कि उससे उपमेयका बोध हो जाये उसे समासोक्ति अलंकार कहते हैं। प्रकृत कथन उसी समासोक्ति अलंकारका निदर्शन है । इलोकके पूर्वार्धमें मेघ उपमान है और मिथ्या उपदेशक उपमेय है। मेघके साथ समस्त विशेषणोंकी समानता होनेसे समासोक्ति अलंकारके बलसे मिथ्या उपदेशकों की प्रतीति होती है । शरद् ऋतुमें वर्षाकालका अन्त आता है। उस समय बनावटी मेघ बड़े घटाटोपसे उठते हैं, खूब गरजते हैं किन्तु बरसे विना ही जल्द विलीन हो जाते हैं। इसी तरह इस पंचम कालमें मिथ्या उपदेशदाता भी अभ्युदय और निश्रेयस मार्गका उपदेश दिये विना ही विलीन हो जाते हैं यद्यपि उनका आडम्बर बड़ी धूमधामका रहता है। इसी तरह श्लोकके उत्तरार्धमें जो मेघ उपमान रूप हैं उनसे समस्त विशेषणोंकी समानता होनेसे समासोक्ति अलंकारके बलसे सम्यक् उपदेशकोंकी उपमेय रूपसे प्रतीति होती है। जैसे शरद्कालमें ऐसे मेघ दुर्लभ हैं जो वर्षाकालके मेघोंसे पुष्ट हुए पहलेके धान्योंको फल सम्पन्न करने के लिए तथा नवीन धान्योंको उत्पन्न करनेके लिए खेतोंको जलसे भर देते हैं। वैसे ही पंचम कालमें ऐसे सच्चे उपदेष्टा दुर्लभ हैं जो पूर्वाचार्योंके उपदेशसे व्युत्पन्न हुए पुरुषोंको सम्यक उपदेशके द्वारा सदाचारसे सम्पन्न करते हैं और नये विनीत धर्म प्रेमियोंको उत्पन्न करते हैं। यहाँ वर्षाकालके मेघ उपमान हैं, पूर्वाचार्य उपमेय हैं; फल सम्पत्ति उपमान है, सदाचारकी प्रकर्षता उपमेय है। जल उपमान है, सम्यक उपदेश उपमेय है। नवीन गेहूँकी बालें उपमान हैं: नयी व्युत्पत्तियाँ या शास्त्रोंके अर्थका रहस्य उपमेय है। अच्छे खेत उपमान हैं, विनीत शिष्य उपमेय हैं । शरदकालके मेघ उपमान हैं, इस युगके गणी उपमेय हैं ।।८।।
पहले कहा है कि मंगल आदिका कथन करके आचार्योंको शास्त्रका व्याख्यान करना चाहिए । अतः आगे ग्रन्थकार आचार्यका लक्षण बतलानेके उद्देश्यसे व्यवहार प्रधान उपदेशके कर्ताका कथन करते हैं
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