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________________ ६६६ धर्मामृत ( अनगार) ___ अथ कार्यवशाच्चतुर्दशीक्रियाव्यतिक्रमे प्रतिविधानमाह चतुर्दशीक्रिया धर्मव्यासङ्गाविवशान्न चेत् । कतं पार्येत पक्षान्ते तहि कार्याष्टमीक्रिया ॥४६॥ व्यासङ्गादि-आदिशब्देन क्षपकनिर्यापणादि । पक्षान्ते-अमावस्यापौर्णमास्ययोः । उक्तं च चारित्रसारे 'चतुर्दशीदिने धर्मव्यासङ्गादिना क्रियां कर्तुं न लभ्येत चेत् पाक्षिकेऽष्टम्याः क्रिया कर्तव्येति ।' क्रियाकाण्डेऽपि 'जदि पुण धम्मव्वासंगा ण कया होज्ज चउद्दसी किरिया । तो पुण्णिमाइदिवसे कायव्वा पक्खिया किरिया ॥' ॥४६॥ अथाष्टम्याः पक्षान्तस्य च क्रियाविधि चारित्रभक्त्यनन्तरभाविनं सर्वत्रालोचनाविधि चोपदिशति स्यात् सिद्धश्रुतचारित्रशान्तिभक्त्याष्टमी क्रिया। पक्षान्ते साऽश्रुता वृत्तं स्तुत्वालोच्यं यथायथम् ॥४७॥ अश्रुता-श्रुतवा । उक्तं च चारित्रसारे-'अष्टम्यां सिद्धश्रुतचारित्रशान्तिभक्तयः । पाक्षिके सिद्धचारित्रशान्तिभक्तयः।' इति । १५ यत्पुनः संस्कृतक्रियाकाण्डे 'सिद्धश्रुतसुचारित्रचैत्यपञ्चगुरुस्तुतिः । शान्तिभक्तिश्च षष्ठीयं क्रिया स्यादष्टमीतिथौ । सिद्धचारित्र चैत्येषु भक्तिः पञ्चगुरुष्वपि । शान्तिभक्तिश्च पक्षान्ते जिने तीर्थे च जन्मनि ॥' [ ] इति । श्रूयते, तन्नित्यदेववन्दनायुक्तयोरेतयोविधानमुक्तमिति वृद्धसंप्रदायः ॥४७॥ यदि कार्यवश चतुर्दशीको उक्त क्रिया करनेमें भूल हो जाये तो उसका उपाय बतलाते हैं ____किसी धार्मिक कार्यमें फंस जानेके कारण यदि साधु चतुर्दशीकी क्रिया न कर सके तो उसे अमावस्या और पूर्णमासीको अष्टमी क्रिया करनी चाहिए ॥४६॥ विशेषार्थ-इस विषयमें चारित्रसार और प्राकृत क्रियाकाण्डमें भी ऐसी ही व्यवस्था है । यथा-यदि चतुर्दशीके दिन धर्मकार्यमें फंस जाने आदिके कारण क्रिया न कर सके तो पक्षान्तमें अष्टमीकी क्रिया करनी चाहिए ॥४६।। आगे अष्टमी और पक्षान्तकी क्रियाविधिको तथा चारित्रभक्तिके अनन्तर होनेवाली आलोचना विधिको कहते हैं सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति और शान्तिभक्तिके साथ अष्टमी क्रिया की जाती है । पाक्षिकी क्रिया इनमें-से श्रुतभक्तिके बिना बाकी तीन भक्तियोंसे की जाती है । तथा साधुओंको चारित्रभक्ति करके यथायोग्य आलोचना करनी चाहिए ॥४७॥ विशेषार्थ-चारित्रसार (पृ. ७१) में भी ऐसा ही कहा है कि अष्टमीमें सिद्धभक्ति, श्रतभक्ति. चारित्रभक्ति और शान्तिभक्ति की जाती है और पाक्षिकमें सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति और शान्तिभक्ति की जाती है। किन्तु संस्कृत क्रियाकाण्डमें कहा है-'अष्टमीको सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, चैत्यभक्ति, पंचगुरुभक्ति और छठी शान्तिभक्ति करनी चाहिए। और पक्षान्त अर्थात् अमावस्या और पूर्णमासीको तथा तीर्थंकरके जन्मकल्याणक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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