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अष्टम अध्याय'
अनागतादिदशभिद् विनयाविचतुष्कयुक् ।
क्षपणं मोक्षुणा कार्यं यथाशक्ति यथागमम् ||६९॥
अनागतादिदशभित्-- अनागतादयो दश संख्या भिदो यस्य । ताश्च यथा'अनागतमतिक्रान्तं कोटीयुतमखण्डितम् । साकारं च निराकारं परिमाणं तथेतरत् ॥ नवमं वर्तनीयातं दशमं स्यात् सहेतुकम् । प्रत्याख्यानविकल्पोऽयमेवं सूत्रे निरुच्यते ॥' [
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अनागतं चतुर्दश्यादिषु कर्तव्यमुपवासादिकं यत् त्रयोदश्यादिषु क्रियते । अतिक्रान्तं चतुर्दश्यादिषु 'कर्तव्यमुपवासादिकं यत् प्रतिपदादिषु क्रियते । कोटियुतं स्वस्तने दिने स्वाध्यायवेलायामतिक्रान्तायां यदि शक्तिर्भविष्यति तदोपवासं करिष्यामि, नो चेन्न करिष्यामीत्यादि संकल्पसमन्वितं यत् क्रियते । अखण्डितमवश्यकर्तव्य पाक्षिकादिषूपवासकरणम् । साकारं सर्वतोभद्रकनकावल्याद्युपवासविधिभेदसहितम् । निराकारं स्वेच्छयोपवासादिकरणम् । परिमाणं षष्ठाष्टमादिकालपरिच्छेदेनोपवासादिकरणम् । परिमाणविषयत्वात्तथोक्तम् । इतरत् यावज्जीवं चतुर्विधाहारादित्यागोऽपरिशेषमित्युच्यते । वर्तनीयातमध्वगतं नाम अटवीनद्यादिनिष्क्रमणद्वारेणोपवासादिकरणम् । सहेतुकमुपसर्गादिनिमित्तापेक्षमुपवासादिकरणम् । विनयादिचतुष्कयुक् — विनयादि - चतुष्टयविशुद्धम् ।
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यथाह -
'कृतिकर्मोपचारश्च विनयो मोक्षवत्र्त्मनि । पञ्चधा विनयाच्छुद्धं प्रत्याख्यानमिदं भवेत् ॥ गुरोवचोऽनुभाव्यं चेच्छुद्धं स्वरपदादिना । प्रत्याख्यानं तथा भूतमनुवादामलं भवेत् ॥
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मुमुक्षुको अपनी शक्तिके अनुसार और आगमके अनुसार अनागत आदि के भेदसे दस भेद रूप और विनय आदि चारसे युक्त क्षपण अवश्य करना चाहिए ||६९ ||
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विशेषार्थ – जिससे शरीर और इन्द्रियोंको तथा अशुभ कर्मको कृश किया जाता है। उसे क्षपण अर्थात् उपवासादि प्रत्याख्यान कहते हैं । साधुको यथाशक्ति और आगमोक्त विधि के अनुसार उपवास आदि अवश्य करना चाहिए। उसके दस प्रकार कहे हैं - चतुर्दशी आदिके दिन कर्तव्य उपवास आदिको त्रयोदशी आदि में करना अनागत है । चतुर्दशी आदि में कर्तव्य उपवास आदिको प्रतिपदा आदिमें करना अतिक्रान्त है । कल स्वाध्यायका समय बीत जानेपर यदि शक्ति होगी तो उपवास आदि करूँगा, अन्यथा नहीं करूँगा, इस प्रकार के संकल्प पूर्वक किया गया प्रत्याख्यान कोटिसहित है । अवश्य कर्तव्य पाक्षिक आदि अवसरोंपर उपवास आदि अवश्य करना अखण्डित है । जो सर्वतोभद्र, कनकावली आदि उपवासविधि भेदपूर्वक कहे हैं उन्हें करना साकार या सभेद प्रत्याख्यान है । स्वेच्छा से कभी भी उपवास आदि करना अनाकार या निराकार प्रत्याख्यान है । षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादशम, पक्ष, अर्धपक्ष, मास आदि कालका परिमाण करके उपवास आदि करना परिमाणगत प्रत्याख्यान है । जीवन पर्यन्तके लिए चार प्रकारके आहारादिका त्याग अपरिशेष प्रत्याख्यान है । मार्ग में अटवी, नदी आदि पार करनेपर किया गया उपवास आदि अध्वगत प्रत्याख्यान है । उपसर्ग आदि आनेपर किया गया उपवास सहेतुक प्रत्याख्यान है । ये दस प्रत्याख्यानके भेद हैं । तथा ये प्रत्याख्यान विनय आदिसे युक्त होने चाहिए । विनयके पाँच
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