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धर्मामृत ( अनगार) अथ सामायिकस्य निरुक्त्या लक्षणमालक्षयति
रागाद्यबाधबोधः स्यात् समायोऽस्मिन्निरुच्यते ।
भवं सामायिकं साम्यं नामादौ सत्यसत्यपि ॥१९॥ समाय इत्यादि। समो रागद्वेषाम्यामबाध्यमानोऽयो बोधः समायः । अस्मिन्-समाये उपयुक्त नोआगमभावसामायिकाख्य भवं सामायिकं तत्परिणतनोआगमभावसामायिकाख्यम् । निरुच्यते-अर्थानुगतं ६ कथ्यत इत्यर्थः। साम्यं-समस्य कर्म, शुद्धचिन्मात्रसंचेतनम् । सति-प्रशस्ते । असति-अप्रशस्ते ।
तथाहि-नामसामायिकं शुभाशुभनामानि श्रुत्वा रागद्वेषवर्जनम् । स्थापनासामायिकं यथोक्तमानोन्मानादिगुणमनोहरास्वितरासु च स्थापनासु रागद्वेषनिषेधः । द्रव्यसामायिकं सुवर्णमृत्तिकादिद्रव्येषु रम्यारम्येषु समदर्शि५ त्वम् । क्षेत्रसामायिकमारामकण्टकवनादिषु च शुभाशुभक्षेत्रेषु समभावः। कालसामायिक वसन्तग्रीष्मादिषु
विशेषार्थ-आगममें किसी भी वस्तुका व्याख्यान निक्षेपपूर्वक करनेका विधान है। उससे अप्रकृतका निराकरण होकर प्रकृतका निरूपण होता है। जैसे सामायिकके छह प्रकार होते हैं-नाम सामायिक, स्थापना सामायिक. द्रव्य सामायिक. क्षेत्र सामायिक. काल सामायिक और भाव सामायिक। इसी तरह चतुर्विंशतिस्तव आदिके भी छह निक्षेपोंकी अपेक्षा छह-छह प्रकार होते हैं। ये सब मिलकर छत्तीस प्रकार होते हैं। जहाँ जिसकी विवक्षा हो वहाँ उसका ग्रहण करना चाहिए ॥१८॥
सामायिकका निरुक्तिपूर्वक लक्षण कहते हैं
राग द्वेषसे अबाध्यमान ज्ञानको समाय कहते हैं। उसमें होनेवाले साम्यभावको सामायिक कहते हैं । प्रशस्त और अप्रशस्त नाम स्थापना आदिमें राग द्वेष न करना साम्य है ॥१९॥
विशेषार्थ-सामायिक शब्द सम और अयके मेलसे निष्पन्न हुआ है। समका अर्थ होता है राग और द्वेषसे रहित । तथा अयका अर्थ होता है ज्ञान । अतः राग द्वेषसे रहित ज्ञान समाय है और उसमें जो हो वह सामायिक है । यह सामायिक शब्दका निरुक्ति परक अर्थ है । इसे साम्य भी कहते हैं। समके कर्मको साम्य कहते हैं। वह है शुद्ध चिन्मात्रका संचेतन या अनुभवन । राग द्वेषके दूर हुए विना शुद्ध चिन्मात्रका संचेतन हो नहीं सकता। कहा है-जिसका मन रूपी जल राग द्वेष आदि लहरोंसे रहित है वह आत्माके तत्त्वका अनुभवन करता है और जिसका मन राग द्वेषसे आकुल है वह आत्मतत्त्वका अनुभवन नहीं कर सकता। अच्छी या बुरी वस्तुओंके विषयमें राग द्वेष न करना साम्य है। जाति, द्रव्य, गुण, क्रियाकी अपेक्षा विना किसीका नाम सामायिक रखना नाम सामायिक निक्षेप है । अच्छे बुरे नामोंको सुनकर राग द्वेष न करना नाम सामायिक है। जो मनुष्य सामायिक आवश्यकमें संलग्न है उसके आकारबाली या उसके समान आकार न रखनेवाली किसी वस्तुमें उसकी स्थापना स्थापना सामायिक निक्षेप है। और वह स्थापना यदि समीचीन में हो तो उससे राग नहीं करना और असुन्दर वस्तुमें हो तो उससे द्वेष नहीं करना स्थापना सामायिक है। जो भविष्यमें सामायिक रूपसे परिणत होगा या हो चुका है उसे द्रव्य सामायिक निक्षेप कहते हैं। उसके दो भेद हैं-आगम द्रव्य सामायिक और नोआगम
१. 'रागद्वेषादिकल्लोलैरलोलं यन्मनोजलम् ।
स पथ्यत्यात्मनस्तत्त्वं तत्तत्वं नेतरो जनः ॥'-समाधितं., ३५ श्लो. ।
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