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________________ ५०४ धर्मामृत (अनगार) भिक्षागोचरचित्रदातचरणामत्रान्नसमादिगात ___ संकल्पाच्छ्रमणस्य वृत्तिपरिसंख्यानं तपोङ्गस्थितिः । नैराश्याय तदाचरेन्निजरसासृग्मांससंशोषण द्वारेणेन्द्रियसंयमाय च परं निर्वेदमासेदिवान् ॥२६॥ भिक्षेत्यादि-भिक्षणाश्रितनानाविधदायकादि-विषयमभिसन्धिमाश्रित्य यतेराहारग्रहणं वृत्तिपरिसंख्यानमित्याख्यायते इत्यर्थः । उक्तं च 'गोयरपमाणदायकभायणणाणाविहाण जं गहणं । तह एसणस्स गहणं विविहस्स य वुत्तिपरिसंखा ॥' [ मूलाचार, गा. ३५५] भिक्षासे सम्बद्ध दाता, चलना, पात्र, अन्न, गृह आदि विषयक अनेक प्रकारके संकल्पसे श्रमणका शरीरके लिए वृत्ति करना वृत्तिपरिसंख्यान नामक तप है। यह तप आशाकी निवृत्तिके लिए और अपने शरीरके रस, रुधिर और मांसको सुखानेके द्वारा इन्द्रिय संयमके लिए संसार, शरीर और भोगोंसे परम वैराग्यको प्राप्त ममक्षको करना चाहिए ॥२६॥ विशेषार्थ-साधु जब भोजनके लिए निकलता है तो भिक्षासे सम्बद्ध दाता आदिके सम्बन्धमें कुछ संकल्प कर लेता है। जैसे-ब्राह्मण या क्षत्रिय आदि और वह भी वृद्ध या बालक या युवा हुआ, अथवा जूते पहने हो या मार्गमें खड़ा हो या हाथी पर चढ़ा हो, या अन्य किसी प्रकारका दाता यदि आज मुझे पड़गाहेगा तभी मैं ठहरूँगा अन्यथा नहीं। इसी प्रकारका संकल्प स्त्रीके विषयमें भी जानना। इस प्रकार दाताविषयक अनेक संकल्प होते हैं। तथा जिस गलीसे जाऊँगा उसी गलीसे पीछे लौटनेपर यदि भिक्षा मिली तो स्वीकार करूँगा अन्यथा नहीं। इसी तरह सीधी गलीसे या गोमूत्रके आकारवाली टेढ़ी-मेढ़ी गलीसे, या चौकोर आकारवाली गलीसे जानेपर भिक्षा मिलेगी तो लूंगा। या अन्दर जानेसे लेकर बाहर निकलने तक यदि पतंगोंके भ्रमणके आकारमें या गोचरीके आकारमें भ्रमण करते हुए भिक्षा मिली तो स्वीकार करूँगा। इस प्रकारके मार्ग विषयक अनेक संकल्प हैं। तथा यदि सुवर्णके या चाँदीके या मिट्टीके पात्रसे भिक्षा देगा तो स्वीकार करूँगा, अन्यथा नहीं। इस प्रकारके पात्रविषयक संकल्प हैं। तथा यदि पिण्डभूत आहार या बहुत पतला पेय, या जौकी लपसी, या मसूर, चना, जौ आदि धान्य, अथवा शाक, कुल्माष आदिसे मिला हुआ भात या शाकके मध्यमें रखा हुआ भात, या चारों ओर व्यंजनके मध्यमें रखा हुआ अन्न, या व्यंजनके मध्य में पुष्पावलीके समान रखाहुआ सिक्थक, अथवा शाक आदि व्यंजन मिलेगा तो, भिक्षा लूँगा, अन्यथा नहीं। या जिससे हाथ लिप्त हो जाये ऐसा कोई गाढ़ा पेय या जो हाथको न लग सके ऐसा कोई खाद्य पेय, सिक्थक सहित पेय या सिक्थक रहित पेय मिलेगा तो आहार ग्रहण करूँगा, अन्यथा नहीं। ये अन्नविषयक संकल्प हैं। तथा अमुक घरोंमें जाऊँगा या इतने घरों में जाऊँगा, इससे अधिकमें नहीं। यह घर विषयक संकल्प है। आदि शब्दसे मुहल्ला आदि लिये जाते हैं। यथा इसी मुहल्ले में प्रवेश करनेपर भिक्षा मिली तो स्वीकार करूँगा या एक ही मुहल्ले में या दो ही मुहल्ले में जाऊँगा। तथा अमुक घरके परिकर रूपसे लगी हुई भूमिमें जाकर भिक्षा मिली तो स्वीकार करूँगा। इसे कुछ निवसन कहते हैं । दूसरे कुछ ग्रन्थकार कहते हैं कि पाटक ( मुहल्ला ) की भूमिमें ही प्रवेश करूँगा घरों में नहीं, इस प्रकारके संकल्पको पाटकनिवसन कहते हैं। अतः इन दोनोंको ही ग्रहण कर लेना चाहिए । तथा एक या दो ही भिक्षा ग्रहण करूँगा, यह भिक्षाविषयक संकल्प है। तथा एक दाताके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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