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धर्मामृत ( अनगार ) जन्यदेहानामप्रसङ्गः । अवहे-वहामि स्म । 'अहो' उद्बोधकं प्रति संबोधनमिदम् । जन्यजनकाधुपाधि
उत्पाद्योत्पादक-पाल्यपालक-भोग्यभोजकादिविपरिणामम् । केन-जीवेन सह । अगां-गतः । व्यजनयं३ विशेषेणोत्पादयामि ॥६॥ अथैकत्वानुप्रेक्षाया भावनाविधिमाह
कि प्राच्यः कश्चिदागादिह सह भवता येन साध्येत सध्यड्
प्रत्येहत्योऽपि कोऽपि त्यज दुरभिति संपदीवापदि स्वान्। सध्रीचो जीव जीवन्ननुभवसि परं त्वोपकतु सहैति,
श्रेयोऽहश्चापक भजसि तत इतस्तत्फलं त्वेककस्त्वम् ॥६॥
पुत्र, किसीका पालक, किसीके द्वारा पाल्य आदि होता है। कहा भी है-जिस प्राणीका सभी प्राणियोंके साथ सभी पिता-पुत्रादि विविध सम्बन्ध नहीं है ऐसा कोई प्राणी ही नहीं है।
किन्तु यह कथन भी सार्वत्रिक नहीं है क्योंकि नित्य निगोदको छोड़कर अन्यत्र ही ऐसा होना सम्भव है। कहा है-'ऐसे अनन्त जीव हैं जिन्होंने त्रस पर्याय प्राप्त नहीं की। उनके भावपाप बड़े प्रचुर होते हैं जिससे वे निगोदवासको नहीं छोड़ते'। इस विषयमें मतभेद भी है । गोमट्टसारके टीकाकारने उस मतभेदको स्पष्ट करते हुए कहा है कि निगोदको न छोड़ने में कारण भावपापकी प्रचुरता है। अतः जबतक प्रचुरता रहती है तबतक निगोदको नहीं छोड़ते। उसमें कमी होनेपर नित्य निगोदसे निकलकर त्रस होकर मोक्ष भी चले जाते हैं। इस सब परिभ्रमणका कारण स्वयं जीव ही है दूसरा कोई नहीं है। अतः संसारकी दशाका चिन्तन करनेवाला 'अहो' इस शब्दसे अपनेको ही उद्बोधित करते हुए अपनी प्रवृत्तिपर खेदखिन्न होता है । इस प्रकारकी भावना भानेसे जीव संसारके दुःखोंसे घबराकर संसारको छोड़नेका ही प्रयत्न करता है । इस प्रकार संसार भावना समाप्त होती है ।।६३।।
अब एकत्वानुप्रेक्षाकी भावनाकी विधि कहते हैं
हे जीव ! क्या पूर्वभवका कोई पुत्रादि इस भवमें तेरे साथ आया है ? जिससे यह अनुमान किया जा सके कि इस जन्मका भी कोई सम्बन्धी मरकर तेरे साथ जायेगा। अतः यह मेरे हैं इस मिथ्या अभिप्रायको छोड़ दे। तथा हे जीव ! क्या तूने जीते हुए यह अनुभव किया है कि जिनको तू अपना मानता है वे सम्पत्तिकी तरह विपत्तिमें भी सहायक हुए हैं ? किन्तु तेरा उपकार करनेके लिए पुण्यकर्म और अपकार करने के लिए पापकर्म तेरे साथ जाते हैं । और इस लोक या परलोकमें उनका फल तू अकेला ही भोगता है ॥६४॥
विशेषार्थ-यदि परलोकसे कोई साथ आया होता तो उसे दृष्टान्त बनाकर परीक्षक जन यह सिद्ध कर सकते थे कि इस लोकसे भी कोई सम्बन्धी परलोकमें जीवके साथ जायेगा। किन्तु परलोकसे तो अकेला ही आया है। अतः चूंकि परलोकसे साथमें कोई नहीं आया अतः यहाँसे भी कोई साथ नहीं जायेगा। कहा है-'जीव संसार में अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मरता है और अकेला ही नाना योनियों में भ्रमण करता है।'
१. 'एकाकी जायते जीवो म्रियते च तथाविधः ।
संसारं पर्यटत्येको नानायोनिसमाकुलम् ॥ [
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